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jaigurudev prarthna



***** जयगुरुदेव*****


विनय करूं मैं दोउ कर जोरे, सतगुरु द्वार तुम्हारे।
बिन घृत दीप आरती साजू, दोऊ अखियन मझधारे।
भाव सहित नित बैठ झरोखे, जोहत प्रियतम प्यारे।
पग ध्वनि सुनहूं श्रवण हीय अपने, मन के काज बिसारे।
जागी सुरती पियत चरणामृत, पियत पियत हुई न्यारे।
घंटा शंख मृदंग सारंगी, बंशी बीन सुना रे।
जयगुरुदेव आरती करती, गावत जय जय कारे।
विनय करूं मैं दोउ कर जोरे, सतगुरु द्वार तुम्हारे।


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सतगुरु तेरे चरणों की,गर धूल जो मिल जाये
सच कहता हूँ मेरी, तकदीर बदल जाये || सतगुरु तेरे

कहते हैं तेरी रहमत, दिन रात बरसती है
एक बूँद जो मिल जाये, मन की कली खिल जाये || सतगुरु तेरे

ये मन बड़ा चंचल है, कैसे इसे समझाऊं
जितना इसे समझाऊं, उतना ही मचल जाये || सतगुरु तेरे

मेहर की नज़र रखना, नजरों से गिराना ना
नज़रों से जो गिर जाये, मुश्किल ही संभल पाए || सतगुरु तेरे


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गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, सतकोटि प्रणाम हमारा है।
मेरी नैया पार लगा देना, कितनों को पार उतारा है।।

मैं बालक अबुध तुम्हारा हूं, तुम समरथ पिता हमारे हो।
मुझे अपनी गोद बिठा लेना, दाता लो भुजा पसारा है।।

यद्यपि संसारी ज्वालायें, हम पर प्रहार कर जाती हैं।
पर शीतल करती रहती है, तेरी शीतल अमृत धारा हैं।।

जब आँधी हमे हिला देती, ठंडी जब हमे कपा देती।
मुस्कान तुम्हारे अधरो की, दे जाती हमें सहारा है।।

कुछ भुजा उठाकर कहते हो, कुछ महामंत्र सा पढ़ते हो।
गद्-गद् हो जाता हुँ स्वामी, मिल जाता बड़ा सहारा है।।

इस मूर्ति माधुरी की झाँकी, यदि सदा मिला करती स्वामी।
सौभाग्य समझते हम अपना, कौतूहल एक तुम्हारा है।।

मैं बारम्बार प्रणाम करूँ, चरणों में शीश झुकाता हूँ।
अब पार अवश्य हो जाउंगा, गुरु ने पतवार संभाला है।।


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मेरे प्यारे गुरु दातार, मंगता द्वारे खड़ा।।
मैं रहा पुकार पुकार मेहर कर देखो जरा।

मोहिं दीजै भक्ति दान, काल दुःख बहुत दिया।
मेरे तड़प उठी हिय मांहि, दरस को तरस रहा।

बरसाओ घटा अपार, प्रेम रंग दीजै बहा।
सुरत भीजै अमी रस धार, तन मन होवे हरा।
 
मेरा जीवन सुफल होइ जाय, तुम गुन गाऊं सदा।
मैं नीच अधम नाकार, तुम्हरे द्वारे पड़ा।

मेरी विनती सुनो धर प्याार, घट उमगाओ दया।
जयगुरुदेव स्वामी पिता हमार, जल्दी पार किया।

मेरे प्यारे गुरु दातार, मंगता द्वारे खड़ा।।

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मेहर की नजर करो मेरी ओर, दया की नजर करो मेरी ओर।।
निश दिन तुम्हें निहारूं सतगुरु, जैसे चन्द्र चकोर।
जानु कौन भूल हुई तन से, लियो हमसे मुख मोड़।
बालक जानि चुक बिसराओ, आया शरण अब मैं तोर।
सदा दयालु स्वभाव तुम्हारा, मेरि बेरिया कस भयो कठोर।
शरणागत की लाज राखो, मोसो पतित अब जाये केहि ओर।
अबकी बार उबार लेव  जो, फिर  धरब पग यहि मग ओर।।

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तेरे दरबार में भगवन, बड़ी आशा से आई हूँ।
ये विनती जो हमारी है, सुनाने तुमको आई हूँ।।

सेवा है, साधन है, शक्ति है, भक्ति है।
ये रोना अपना लेकर मैं, सुनाने तुमको आई हूँ।।
 
कहीं पर तन्दुल, कहीं पर बेर जूठे थे मगर भगवन।
यहाँ तो आँसुओ का जल, चढ़ाने तुमको आई हूँ।।

सुना है टेर पर भक्तों, के नंगे पाँव धाते हो।
यहाँ तो स्नेह लेकर मैं रिझाने तुमको आई हूँ।।

पतित को भूल मत जाना, कि तुम पतितों के पावन हो।
इसी की याद मैं सतगुरु दिलाने तुमको आई हूँ।।


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एक तुम्हीं आधार सतगुरु, एक तुम्हीं आधार।। 

मिलो जब तक तुम जीवन में,
शांति नहीं मिल सकती है मन में,
खोज फिरा संसार सतगुरु, एक तुम्हीं आधार।

छा जाता जग मे अंधीयारा,
तब पावे प्रकाश की धारा,
आकर तेरे द्वार सतगुरु, एक तुम्हीं आधार।

कैसा भी हो तैरन हारा,
जब तक मिले ना शरण सहारा,
हो ना सके भवपार सतगुरु, एक तुम्हीं आधार।

हे! प्रभु तुम ही विविध रूपो से,
हमे बचाते भव कुपो से,
ऐसो परम उदार सत्गुरु, एक तुम्हीं आधार।

हम आये हैं द्वार तुम्हारे,
सब दुःख दूर करो दुःख हारे
जयगुरुदेव दयाल सत्गुरु, एक तुम्ही आधार।।


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अब अपना बना लो सतगुरु प्यारे,
रहूँ जिससे निर्भय सहारे तुम्हारे।

जगत में है समरथ कोई दिखाता,
बताओ तुम्हीं किसके जाऊँ दुआरे।

यह माना कि सिर मेरे पापों की गठरी,
मगर कौन बिन तेरे स्वामी उतारे।

युगों से ये नैया भंवर में पड़ी है,
दया करके अब तो लगा दो किनारे।

अगर अबकी डूबी तो गफलत मेरी,
दयालु शरण में आया जो तुम्हारे।

है विश्वास अबकी ना डूबेगी नैया,
जयगुरुदेव पतवार मेरी सम्हारे।।


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सतगुरु शांति वाले, तुमको लाखो प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखो प्रणाम।।

सुत दारा परिवार हैं जितने,
सबका प्रेम बतौर हैं सपने,
अन्त समय कोउ नहीं अपने,
भव पार लगाने वाले, तुमको लाखो प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखो प्रणाम।।

वेद वेदान्त पुराण बताये,
सदाचार सतसंग गहायें,
ध्यान योग का भेद सिखाये,
ज्योति जगाने वाले, तुमको लाखो प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखो प्रणाम।।

भक्तों पर हैं तुम्हरे लोचन,
संकट टारन शोक विमोचन,
गुरु तुमही पापों के मोचन,
शब्द भेद बताने वाले, तुमको लाखो प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखो प्रणाम।।

दीनों की विनती सुन लीजै,
किंकर जान के किरपा कीजै,
दर्शन अपना हरदम दीजै,
यम त्रास मिटाने वाले, तुमको लाखो प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखो प्रणाम।।

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मुझे गुरु देव चरणों में, लगा लोगे तो क्या होंगा?
भटकती सुर्त को पावन, बना लोंगे तो क्या होंगा?

समरथ तुम सदृश कोई, है आया दृष्टि में मेरे।
शरण में इससे आया हूँ, बचा लोंगे तो क्या होंगा?

तूम्हारे द्वार से कोई, कभी खाली नहीं जाता।
मेरी झोली भी भर करके, उठा दोंगे तो क्या होंगा?

दयालु दीन बन्धु नाम, तेरे लोग कहते हैं।
दया कर तुच्छ सेवक यदी, बना लोंगे तो क्या होंगा?

जानता हूँ कि इसके योग्य, भी मैं हूँ नहीं स्वामी।
हो परस लौह को कंचन, बना लोंगे तो क्या होंगा?

बहुत बीती रही थोड़ी, वो यह भी जाने वाली है।
उस अन्तिम स्वाँस लौं अपना, बना लोंगे तो क्या होंगा?


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जब तेरी डोली निकाली जायेगी,
बिन मुहूरत के उठाली जायेगी।।

उन हकीमों ने कहा यों बोलकर,
कहते थे दावे किताबे खोलकर,
यह दवा हरगिज खाली जायेगी।

जर सिकन्दर का यहीं सब रह गया,
मरते दम लुकमान भी ये कह गया,
यह घड़ी हरगिज टाली जायेगी।

क्यों गुलो पर हो रही बुलबुल निशार,
है खड़ा माली वो पीछे होशियार,
मार कर गोली गिराली जायेगी।

मुसाफिर क्यों बसरता है यहाँ,
यह किराए पर मिला तुझको मका,
कोठरी खाली करा ली जायेगी।

होगा जब यम लोक में तेरा हिसाब,
कैसे मुकरोगे बताओ जनाब,
जब बही तेरी निकाली जायेगी।।


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मत खोलो गुरुजी मेरा खाता, मेरा जनम जनम का नाता।।
खाता मेरा काला प्यारे, पापों से भर डाला प्यारे।

मैं तो निशदिन पाप कमाता, मेरा जनम जनम का नाता।।
मैं अवगुण की खान हूँ स्वामी, मैं मूरख अज्ञान हूँ स्वामी।

मैं तो दीन हूँ मेरे दाता, मेरा जनम जनम का नाता।
कौन जनम मैं पाप किन्हा, कौन जनम तूम छमा दिन्हा।

अब खोलो अरदास मेरे दाता, मेरा जनम जनम का नाता।।


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तेरा है काम केवट का, किनारे नाव ला देना।
चढ़ा कर मुझ सा पापीं को, गुरु उस पार कर देना।।

पुकारूँ मैं किनारे से, खड़े पर आप नहीं सुनते।
हुई जो भूल मेरे से, कृपा करके भूला देना।।

विषय वसनाओं में, सदा भटका रहा स्वामी।
थी कुछ याद निज घर की, पता उस का बता देना।।

दया सागर पतित पावन तुम्हे जो लोंग कहते हैं।
रहे कुछ याद इसका भी, अयाश अपना मिटा देना।।

जो थक कर पड़ा द्वारे, शरण देना मुनासिब है।
अगर चाहो बचालो या मुझे फिर से डुबो देना।।

अगर हो सिन्घ तो मैं भी, तुम्हारा एक कतरा हूँ।
अगर यह दास मिल जाए, कभी विनती ये सुन लेना।।


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हे! मेरे गुरुदेव करूणा, सिन्धु करूणा किजिये।
हूँ अधम आधिन अशरण, अब शरण मे लिजिये।।

मुझ में है जप तप साधन, और नहीं कुछ ज्ञान है।
निरलज्जता है एक बाकी, और बस अभीमान है।।

खा रहा गोते हूँ, भवसिन्धु के मजधार में।
आसरा है दूसरा, कोई अब संसार में।।

पाप बोझे से लदी, नैया भवर मे जा फसी।
नाथ दौड़ौ और बचा लो, अब तो डूबी जा रही।।

आप भी यदी सुधी लोंगे, फिर कहाँ जाउगाँ मैं।
जन्म दुःख से नाव कैसे पार कर पाउगाँ मैं।।

हर जगह मंजील भटक कर, ली शरण गुरु आपकी।
पार करना या करना, दोनो मरजी आपकी।।
  

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गुरुदेव मेरी नैया, उस पार लगा देना।
अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना।।

संभव है झंझट में, मैं तुमको भूल जाऊं।
पर नाथ दया करके, मुझ को भुला देना।।

दल बल के साथ मया, घेरे जो मुझे आकर।
तुम देखते ना रहना, झट के बचा लेना।।

तुम देव मैं पुजारी, तुम इष्ट मैं उपासक।
चरणो तें पड़ा हुँ तेरे, हे! नाथ निभा लना।।


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मुझे है काम सतगुरु से, जगत रूठे तो रूठन दे।
कुटुम्ब परिवार सुत दारा, माल धन लाज लोकन की।

गुरु का भजन करने में, अगर छुटे तो छुटन दे।। 
करू कल्याण मैं अपना, बैठ सतसंग संतन के।

लोग दुनिया के भोगो में, मौज लूटे तो लूटन दे।।
लगी मन में लगन मेरे, गुरु का ध्यान करने की।

प्रीत संसार विधियो से, अगर छुटे तो छुटन दे।।
धरी सिर पाप की मटकी, मेरे गुरु देव ने झटकी।

वो ब्रम्हानन्द ने पटकी, अगर फूटे तो फूटन दे।।


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हे री! मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद जाने कोई।
सूली उपर सेज हमारी, किस विध सोना होय।
गगन मण्डल पर सेज पीया की, किस विध मिलना होय।
घायल की गती घायल जाने, के जिन लागी होय।
जौहरी की गती जौहरी जाने, के जिन जौहर होय।
दरद की मारी बन बन डोलु, वैद्य मिलयो नही कोय।
मीरा की प्रभु पीर मीटे, जब वैद्य सावरीया होय।


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सुबह को बचपन हँसते देखा, फिर दोपहर जवानी।
सांझ बुढ़ापा ढलते देखा, रात को खतम कहानी।।

बचपन बेपरवाह की जीसने, खेल कूद के मेले।
आई जवानी अंधी होकर, पाप किया द्युत खेले।

वृद्ध अवस्था थर थर काँपे, आवे याद पुरानी।।
उलझा जीवन जीता रहा तू, हार कभी ना मानी।

राम सुमरा काम बिसरा, करता गया मनमानी।
समय बदल तू ना बदला, हो गयी भरी हानी।।

जीवन में आशाओं के तूने, कितने महल सजाये।
धरा धरा यहाँ रह जाये जब, अन्त बुढ़ापा आये।

टूटा पिंजरा उड़ गया पंछी, होगयी खतम कहानी।।
सुबह को बचपन हँसते देखा, फिर दोपहर जवानी। 
सांझ बुढ़ापा ढलते देखा, रात को खतम कहानी।।


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सतगुरु परम् दयाल री, कोई कदर जानी।
जीव अनाड़ी जग झक मारे, दुःख सुख संग बेहाल री। कोई...
छुटन की गुरु जुगत बतावे, मेटे घट दुःख शाल री। कोई...
दया वचन करनी फरमावे, काटे यम का जाल री। कोई...
निस दिन तरे अंग संग डोले, जैसे माँ संग बाल री। कोई...
अन्त समय जब तेरा आवे, आप होय रक्षपाल री। कोई...
घट तेरे में प्रकट करावे, अपना रूप विशाल री। कोई...
पकड़ चरण तू निज घर चलदे, हो गई परम् निहाल री। कोई...
जयगुरुदेव स्वामी सतगुरु भेटे, हो गई मालामाल री। कोई...


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छोड़ कर संसार जब तू जाएगा,
कोई ना साथी तेरा साथ निभायेंगा।।

गर प्रभु का भजन किया ना, सत्संग किया ना दो घड़िया।
यमदूत लगाकर तूझको, ले जायेगा हथकड़िया।
कौन छुड़वायेगा? कोई ना साथी तेरा साथ निभायेंगा।।

इस पेट भरन के खातिर, तू पाप कमाता निस दिन।
समसान में लकड़ी रख कर, तेरे आग लगेगी एक दिन।
खाक हो जायेंगा, कोई ना साथी तेरा साथ निभायेंगा।।

क्या कहता मेरा-मेरा, यह दुनिया रैन बसेरा।
यहाँ कोई ना रहने पाता, है चंद दिनो का नाता।
हंस उड जायेंगा, कोई ना साथी तेरा साथ निभायेंगा।।

सत्संग की बहती गंगा, तू उसमें लगा ले गोता।
वरना इस दुनिया से, तू जायेंगा एक दिन रोता।
फिर पछतायेंगा, कोई ना साथी तेरा साथ निभायेंगा।।

गुरुदेव शरण में निस दिन, तू प्रित लगा ले बन्दे।
कट जायेंगे सब तेरे, ये जनम-मरन के फन्दे।
पार हो जायेंगा, कोई ना साथी तेरा साथ निभायेंगा।।


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जयगुरुदेव जयगुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।।
मेरे मात-पिता गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
सब देवन के देव गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
तीनके शरण मेरे मन लेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
जीव काज जग आये गुरु देव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
अपना भेद बताये गुरु देव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
सत्त स्वरूपी रूप गुरू देव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
अलख स्वरूपी रूप गुरू देव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
अगम स्वरूपी रूप गुरू देव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
पुरुष अनामी रूप गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
सबके स्वामी आप गुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
उनके चरण कमल मन सेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।
जयगुरुदेव जयगुरुदेव, जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव।।


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बता दो गुरु तुमको पाऊं मैं कैसे?
विमुख होकर सन्मुख आऊं मैं कैसे?

विषय वासनाए निकलती नहीं है,
यह चंचल चप्पल मन मनाऊ मैं कैसे?

कभी सोचती तुमको रोकर पुकारूं,
पर ऐसा ह्रदय को बनाऊं मैं कैसे?

प्रबल है अहंकार साधन संयम,
यह अज्ञान अपना मिटाओ मैं कैसे?

कठिन मोह माया में अतिशय भ्रमित हूं,
गुरु बिन दयापार पांव मैं कैसे?

हृदय दिव्य आलोक से जो विमल हो,
विनायक किस तरह की सुनाऊं मैं कैसे?

दया मय तुम ही मुझ पतित को संभालो,
मैं कितनी पतित हूं बताऊं मैं कैसे?


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रे मन धीरज क्यों धरे।।
संवत दो हजार के ऊपर, ऐसा जोग परे।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चाहूं दिस कॉल परे।
अकाल मृत्यु जग माही ब्यापे, प्रजा बहुत मरे।
सहस वर्ष लगी सतयुग ब्यापे, सुख की दशा फिरे।
स्वर्ण फूल बन धरती फूले, धर्म की बेल बड़े।
काल ब्याल से वही बचेगा, जो गुरु का ध्यान धरे।
सूरदास हरि की यह लीला, टारे नहीं टरे।।


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मन लागो मेरो यार फकीरी में।।
जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नहीं अमीरी में।
भला बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में।
प्रेम नगर में रहनी हमारी ,भली बनाई सबुरी।।
में हाथ में कुंडी बगल में सोटा, चारों दिशा जगीरी में।
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहां फिरत मगरूरी में।
कहां तक कबीर सुनो भाई साधु, साहब मिले सबूरी में।।


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कारू विनती दोउ कर जोरी,
अर्ज सुनो राधास्वामी मोरी।।

सतपुरुष तुम सतगुरु दाता,
सब जीवन के पिता और माता।

दया आधार अपना कर लीजिए,
काल जाल से न्यारा की कीजिए।

सतयुग त्रेता द्वापर बीता,
काहु जानी शब्द की रीता।

कलयुग में स्वामी दया विचारी,
परगट कारके शब्द पुकारी।

जीव काज स्वामी जग में आए,
भवसागर से पार लगाए।

तीन छोड़ चौथा पद देना,
सतनाम सतगुरु का चिन्हा।

जगमग ज्योत हो तो उजियारा,
गगन स्रोत पर चंद्र निहारा।

श्वेत सिंहासन छात्र विराजे,
अनहद शब्द गैब धुन गाजे।

 क्षर अक्षर नि:क्षर पारा,
विनती करें जहां दास तुम्हारा।

लोक आलोक पांवे सुख धामा,
चरण शरण दीजिए विश्रामा।

करूं विनती दोउ कर जोरी,
अर्ज सुनो राधास्वामी मोरी।।


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क्या लेकर तू आया जग में, क्या लेकर तू जाएगा।
सोच समझ ले रे मन मूरख, आखिर में पछताएगा।।
  
इस दुनिया के ठाट बाट में, क्यों बंदे तू भूला है।
धन-संपत्ति मान प्रतिष्ठा, पाकर क्यों तू फूला है।

धन-संपत्ति माल खजाना, यूं ही पड़ा रह जाएगा।
सोच समझ ले रे मन मूरख, आखिर में पछताएगा।।

भाई बंधु मित्र प्यारे, मरघट तक संग जाएंगे।
स्वार्थ के दो आंसू देकर, लौट लौट घर आएंगे।

कोई ना तेरा साथ ही होगा, काल तुझे ही खायेगा।
सोच समझ ले रे मन मूरख, आखिर में पछताएगा।।

कंचन जैसी काया तेरी, तुरंत जलाई जाएगी।
जिसे त्रिया से नेहा धरे तू, वह भी देख डराएगी।

एक मास तक याद रखेगी, फिर तू याद ना आएगा।
सोच समझ ले रे मन मूरख, आखिर में पछताएगा।।

राजा रंक पुजारी पंडित, सब को एक दिन जाना है।
आंखें खोल कर देख बावरे, जगत मुसाफिर खाना है।

जय गुरुदेव नाम ही आखिर, साथ तेरा निभाएगा।
सोच समझ ले रे मन मूरख, आखिर में पछताएगा।।


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यह प्रेम सदा भरपूर रहे, गुरुदेव तुम्हारे चरणो में।
यह अर्ज मेरी मंजूर रहे, गुरुदेव तुम्हारे चरणो में।

निजी जीवन की डोर प्रभु, तुम्हें सौप दई पकड़ो इसको।
उद्धार करो यह दास पड़ा, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।

संसार में देखा सार नहीं, तब श्री चरणों की शरण गई।
भाव बंद कटे यह विनती है, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।

नयनों में तुम्हारा रूप रमें, मन ध्यान तुम्हारे में मगन रहे।
तन अर्पित तव सेवा में रहे, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।

जो शब्द मेरे मुख से निकले, मेरे नाथ उसे समझे पिघले।
मेरे भाव सदा ऐसे ही रहे, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।।

2 comments:

  1. जयगुरुदेव परफेक्ट है जी । धन्यबाद

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  2. Jaigurudev. It is really treasure as a reference for us. Keep it up. Hats off Shri Shahar for your strenuous efforts to compile such Vani of Saints.

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