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karmon ke len-den ka hisab bada pecheeda hai


कर्मों के लेनदेन का हिसाब बड़ा पेचीदा है
काल ने दयाल से वरदान लिया था कि जीव को उसके पिछले जन्म की कोई भी बात याद रहे. सो हमारा किसके साथ कितना कर्मों का हिसाब है हमें पता नहीं. मान लो किसी ने पिछले जन्म में हमपर कोई उपकार किया हो, और उस जन्म में हम उनके उस उपकार का भुगतान कर पाये हो. आज हम सेवा के जरिये वह भुगतान कर रहे हैं. लेकिन अगर हमारे मन में अहंकार जाये कि फलाने का यह काम मैने करवाया तो यह सेवा व्यर्थ है. सेवा चाहे किसी डेरे ,धर्म स्थल या किसी अन्य जगह की जाये, सेवा तो सेवा ही है. पर अगर हमारी भावना किसी फल प्राप्ती की हो तो वो सेवा भी व्यर्थ है.



बाबाजी भी फरमाते हैं:  "सेवा भावना की बात है जो दिल से की जाये, ऐसा जरुरी नहीं की किसी धर्म स्थल या डेरे में की गई सेवा ही सेवा है. प्रेम से की गई सेवा ही सही मायने में सच्ची सेवा है"

बेशक हमारे कुछ कर्मों का हिसाब किताब सेवा जरिये कटता जरुर है पर सेवा में प्रेम और आज़िजी होनी जरुरी है, दिखावे की सेवा नहीं होनी चाहिये.
पर कर्मों के पहाड़ को काटना सिर्फ सेवा से संभव नही उसके लिये सुमिरन भजन ही जरूरी है. सेवा करें या ना करें बिना सुमिरन भजन मुक्ति नहीं सेवा तीन प्रकार की होती है:
1:-तन की सेवा
2:-धन की सेवा
3:-मन की सेवा
आप तन की सेवा नहीं भी कर पाये, धन की सेवा नहीं भी कर पाये पर मन की सेवा यानि भजन सुमिरन जरुरी ही है.

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