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Satsang me kya hota hai?



 
 
सत्संग मे क्या-क्या होता है?

     बहुत से लोग खुश होकर कहते हैं कि आज का सत्संग बहुत ही अच्छा था।

    ये अच्छा सत्संग क्या होता है ? क्या सत्संग में भी qualities होती है? क्या सत्संग भी अच्छा बुरा होता है?

       शायद नहीं, कभी नहीं, सत्संग एक ही होता है, बार बार संत - महात्मा हर सत्संग में गुरु की ही वाणी दोहराते हैं।

     "कि पाप करो, पुण्य करो, किसी का दिल दुखाओ, गरीब लाचारों की सेवा करो, मदद करो, जिस मकसद के लिये इस दुनिया में आये हो, वो भूलना नहीं, गुरु से नाम दान लो, गुरु को याद करते रहो, अंदर में एकाग्रता लाओ, सिमरन करते रहो, यही है आपका मकसद, जिस कारण आपको ये मानव जन्म  मिला है। यही होता है, हर सत्संग में, बस !"

     शायद आज आपने सत्संग बड़े ही ध्यान से सुना होगा, तभी आपको आज का सत्संग अच्छा लगा होगा। रोज सुनते रहो, गुरु का सत्संग बड़े ही ध्यान से, और अपना जीवन सफल कर लो। क्योंकि जिस गुरु ने, जिस परमात्मा ने आपको यहाँ भेजा है, वो अंदर बैठा आपको याद कर रहा है। वो सब कुछ देख रहा है। यही सत्य है।

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एक चुप सौ सुख
एक मछलीमार काँटा डालकर तालाब के किनारे बैठा था ! काफी समय बाद भी कोई मछली काँटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई , तो वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि मैंने काँटा गलत जगह डाला है, यहाँ कोई मछली ही हो ! उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके काँटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं ! उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं

एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा , तो उससे कहा ~ लगता है भैया ! यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो ! अब इस तालाब की मछलियाँ काँटे में नहीं फँसतीं मछलीमार ने हैरत से पूछा
क्यों ... ऐसा क्या है यहाँ ?

राहगीर बोला ~ पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे ! उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था ! उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से सुनती !
यह उनके प्रवचनों का ही असर है , कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए काँटा डालकर बैठता है , तो ये मौन धारण कर लेती हैं !

जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं , तो काँटे में फँसेगी कैसे ? इसलिए ... बेहतर यहीं होगा कि, आप कहीं और जाकर काँटा डालो
परमात्मा ने हर इंसान को दो आँख, दो कान, दो नासिका, हर इन्द्रिय दो-दो ही प्रदान करी हैं , लेकिन जिह्वा एक ही दी है !

क्या कारण रहा होगा ?
क्योंकि यह एक ही अनेकों भयंकर परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है !
संत ने कितनी सही बात कही है , कि,
जब मुँह खोलोगे ही नहीं , तो फँसोगे कैसे ?

ऐसे ही, जो,
अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं , तो,इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लो  तो, बाकी सब इन्द्रियाँ स्वयं नियंत्रित रहेंगी !शाकाहारी रहिए और किसी ऐसे नशे का शेवन करें जिससे मां, बहन, बेटी की पहचान खत्म हो जाऐ।
यह बातें हमें भी अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए !

एक चुप  सौ सुख और लगातार नाम ध्वनि का जाप।

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