Jaigurudev Satsang
महात्मा तुमको बराबर देखते रहते हैं और समझाते हैं कि इस मनुष्य शरीर से काम ले लो। यह बार बार नहीं मिलेगा। गुरू तभी सम्हाल करेंगे जब नाम की कमाई करोगे। इसलिए अभी वक्त है ध्यान भजन कर लो।
सत्तलोक हो या अनाम पद हो तुम पहुंचोगे तो गुरू कृपा से। गुरू पूजा करके मतलब ये है कि गुरू की बात मानो।
जो वो कहे उसे करो जो न कहें उसे मत करो। वो कहते हैं कि भजन करो, ध्यान करो।
भजन करने लगोगे तो काम करते भी याद बनी रहेगी।
गुरू पूजा में सबकी पूजा। समुद्र की पूजा में सभी नदी नाले की पूजा हो गई। ऐसे गुरू की आज्ञा का पालन किया वह कहलाता है गुरू भक्त।
तुम गुरू को तन व मन दे दो तो अन्तर में दीनता आ जाएगी। जब दीन हो जाओगे तब वो मालिक, तुम पर दयाल हो जाएगा।
शरीर रोग का भण्डार है। सप्ताह में एक दिन अन्न को न खाओ तो पेट के विकार निकल जायेंगे, शरीर शुद्ध हो जाएगा। शरीर शुद्ध नहीं है तो रोगग्रस्त शरीर रहेगा।
महात्माओ ने जो त्यौहार रक्खे थे उसका पालन करोगे शरीर शुद्ध हो जाएगा निरोगी रहेगा।
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यह सच है कि जब तक उस मालिक को प्राप्त करने का ख्याल दिल में नहीं आएगा तब तक आप उधर नहीं जा सकते। बाहर भी अगर आप को किसी से मिलने जाना है तो पहले तुम्हारे दिल में ख्याल उधर का ही रहेगा। तुम सबसे बात करोगे अपना काम भी करोगे पर ध्यान तुम्हारा उधर ही लगा रहेगा कि हमको वहां जाना है।
इसी तरह से उधर मालिक के पास जाने का भी यही है। आप का ध्यान उधर रहेगा आप बात करोगे, काम करोगे लेकिन दिल में ख्याल यही रहेगा कि जल्दी फुरसत मिले और मैं साधना में बैठूं।
मैंने कई लोगों को देखा। कल दो बसों में भर कर आदमी आए। उसमें नामदानी भी थे पर कुछ नहीं यहां चलना है वहां चलना है, उसे देखना है। आस्था जरा भी नहीं है।
जो नामदान लेकर साधना करेगा वही नामदानी है। जिसने नामदान तो ले लिया पर नामदान का काम नहीं करेगा तो वह तो जैसा पहले था वैसे ही अब भी है। जो नामदानी का काम करे, भजन करे सुमिरन ध्यान करे, भजन में चढ़ाई करे वह नामदानी है। तुमने नामदान ले लिया पर नामदान का काम नहीं करते इधर घूमे उधर घूमे तो नामदानी कैसे?
नामदानी को तो फिक्र होता है अपनी जीवात्मा को जगाने का, अन्तर में चलने का कुछ भजन ध्यान करने का।
जयगुरूदेव.........
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