Ads Top

Sunahari yaaden

 


कुछ वर्ष पहले की बात है. स्वामी जी रेल के प्रथम दर्जे के डिब्बे में सफर कर रहे थे. रात्रि का समय था और दिल्ली जाना था. १२०० मील की पचासों हज़ार सायकिलों की यात्रा जो नवम्बर ७० में गोरखपुर से चलने वाली थी और उसका पड़ाव तीन दिनों तक दिल्ली रामलीला मैदान में पड़ने वाला था उसी के सम्बन्ध में यात्रियों के ठहरने भोजन, पानी, बिजली आदि की व्यवस्था की देखभाल करने जा रहे थे.

      स्वामी जी चुपचाप नीचे कि बर्थ पर बैठे थे.  सामने की बर्थ पर दो सज्जन बैठे बातें कर रहे थे. उनमें से एक की बर्थ ऊपर थी और अभी सोने के लिए नहीं गये थे. कुछ समय बीत जाने के बाद एक सज्जन स्वामी जी की तरफ मुँह करके बोले कि महात्मा जी! आप का आश्रम कहाँ है ?

      स्वामी जी ने सहज भाव में उत्तर दिया कि एक छोटा मोटा आश्रम मथुरा में है.

      यह सुनकर वे फिर बोले कि क्या आप कथा कीर्तन करते है ?

      स्वामी ने कहा कि मैं ‘जय गुरुदेव’ नाम का प्रचार करता हूं.

      यह सुनते ही वह फिर बोल पड़े कि आप ही महात्मा जयगुरूदेव हैं. मैंने सुना है कि आपके पास हवाई जहाज है.

      स्वामी जी यह सुनकर हँसने लगे और उन्होंने कहा कि हवाई जहाज तो नहीं मेरे पास ‘राकेट’ है ‘राकेट’ और उसके सामने यह राकेट कुछ भी नहीं है. थोड़ी तेजी में स्वामी जी ने कहा कि “देखिये ! मैं करोड़ों मील गया और अब वापस आ गया. यह मेरा ऊपर करोड़ों मील जाना और आना एक सेकंड भी नहीं लगा और हो गया.

      वो सज्जन स्वामी जी को आँख फाड़ कर देख रहे थे.

      स्वामी जी की बात चल रही थी उन्होंने बात के क्रम में ही बताया कि मैंने ऊपर जाकर आपके लाखों जन्मों के सारे अकाउन्ट को देख लिया है. स्वामी जी ने उन महाशय से पूछा कि कहिये तो कृपया बता दूँ. इसके बाद तुरंत ही उनके जीवन की किसी बहुत गुप्त घटना को बता दिया.

      उस भेद को सुनते ही वो सज्जन अपनी सीट छोड़कर नीचे बैठ गये और पैर पकड़ लिया. स्वामी जी ने बहुत कहा कि अपनी सीट पर आराम से बैठिये किन्तु उन्होंने सारी रात जमीन पर लेटना ही उचित समझा. उन्होंने स्वामी जी से बताया कि अब मुझे विश्वास हो गया कि भारत में अभी भी महात्मा हैं वे वास्तव में शहंशाह के भी शहंशाह हैं.”
 

हुजूर बाबा जयगुरुदेव

No comments:

Copyright Reserved to Anything Learn. Powered by Blogger.