Ads Top

Hakim lukman


एक बार हकीम लुकमान के बेटे ने अपने पिता जी से पूछा," अगर मालिक ने मुझसे कभी फ़रमाया कि कोई चीज़ माँग लो, तो मैं क्या माँगूँ ?" हकीम लुकमान ने जवाब दिया, "परमार्थ का धन" बेटे ने फिर कहा, " दूसरी चीज़ माँगनी हो तो ?" हकीम लुकमान ने कहा, " हलाल की कौड़ी " (पसीने की कमाई) बेटे ने फिर पूछा, " तीसरी चीज़ "? जवाब मिला, "उदारता" बेटे ने फिर पूछा, "अगर चौथी चीज़ माँगने  को हो तो ?" हकीम जी का उत्तर था, " शर्म " बेटे का अगला सवाल था, " अगर पाँचवीं चीज़ माँगने को कहें तो "? हकीम लुकमान ने जवाब दिया, " अच्छा स्वभाव " बेटे ने फिर पूछा, " अगर और कुछ माँगने के लिए कहें तो "? लुकमान ने उत्तर दिया," बेटा ! जिसको ये पाँचों चीज़ें यानी परमार्थ का धन, मेहनत ईमानदारी की कमाई, उदारता, शर्म और अच्छा स्वभाव प्राप्त हो गया हो तो उसके लिए दुनिया में माँगने के लिए कुछ बचता ही नहीं है। यही ख़ुशहाली का रास्ता है।जिस पर चलकर दुनिया का हर व्यक्ति ख़ुशी से अपनी ज़िंदगी गुज़ार सकता है।

संत कहते हैं कि जैसे सांसारिक कार्य युवावस्था में ही हो सकते हैं, वैसे ही भक्ति और परमार्थ कार्य भी इसी अवस्था में संभव है क्योंकि बुढ़ापे में तो शारीरिक बल क्षीण होने के साथ साथ शरीर में अनेक रोग लग जाते हैं, उस समय शरीर को सम्भालें कि भक्ति करें। बुढ़ापे में तो जालिम भेड़िया भी परहेज़गार बन जाता है क्योंकि तब उससे कुछ हो ही नहीं सकता है।

एक जवान रास्ते पर चला जा रहा था, उसके सिर पर पगड़ी थी। वह कभी अपने साये को देखता था, कभी शीशे में देख देख पगड़ी सँवारता, चाल भी टेढ़ी थी। उसको इतना अभिमान था, मानो दुनिया में उसके बराबर दूसरा कोई है ही नहीं। उसे देखकर एक बुढ़िया, जो विचारवान थी, उसके रास्ते में बैठ कर मिट्टी में हाथ मारने लग गई। जवान ने पूछा, "अरी माई ! क्या ढूँढ़ रही हो ?" वह बोली, " बेटा ! जवानी ढूँढ़ रही हूँ।" जवान की समझ में यह बात नहीं आई और बोला, " अरी माता ! तू तो मिट्टी में हाथ मार रही है, जवानी यहाँ कैसे आई ?" वह बोली, "बेटा ! जो जवानी आज तेरे ऊपर है, एक वक़्त था, यह मुझ पर भी आई थी लेकिन वह मिट्टी में मिल गई। अब उसे ढूँढ़ती हूँ, शायद फिर मिल जाए।" मनुष्य के सुधरने का भी एक समय होता है।  

शायद उस माई के मिलाप से उस जवान के सुधरने का अवसर चुका था। उसने बुढ़िया की बात को ध्यान से सुना और काफ़ी सोचने विचारने के बाद वह उस बुढ़िया माता से बोला, "माता ! दया करके मेरे भले की कोई बात बताओ।" वह बोली,"बेटा ! सत्संग में जाओ और संत सतगुरु से रास्ता लेकर भवसागर से पार उतरने का यत्न करो, यही तुम्हारे भले की बात है।" फिर जवान ने बुढ़िया के चरण छुए और  उसका धन्यवाद करते हुए उसकी शिक्षानुसार सन्त सतगुरु की खोज करके और उनसे "नामदान" लेकर प्रभु प्राप्ति का प्रयत्न करने लगा।

No comments:

Copyright Reserved to Anything Learn. Powered by Blogger.