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Jaigurudev nam dhwani ki mahima






" जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव "

'नाम रहा संतन आधीना, संत बिना कोई नाम चिन्हा'
वर्तमान समय में चाहे संसारी हों या सतसंगी हों, सभी दुखी हैं। सभी अपने-अपने कर्मों के अनुसार दुःख, तकलीफ़ों और ना-ना प्रकार के कष्टों से घिरे हुए हैं। ऐसे समय में सुख आनन्द के लिए यथासंभव सभी प्रकार के प्रयास करने के उपरांत भी कहीं लाभ नहीं मिल रहा है। आज सिर्फ और सिर्फ एक ही सहारा दिखलाई दे रहा है और वह है वक़्त के संत-सतगुरु पूज्य "बाबा उमाकान्त जी महाराज" की शरण गहो।

इस समय वक़्त के संत-सतगुरु परम पूज्य "बाबा उमाकान्त जी महाराज" ने सभी के दुःख-दर्द, तकलीफ़ों को दूर करने का उपाय प्रभु के पावन नाम "जयगुरुदेव" की अखण्ड नाम धुन का जाप बतलाया है। आदेशानुसार इस "जयगुरुदेव" नाम धुनि को संसारी करें तो बड़ा फायदा मिलेगा और सतसंगी करें तो उन्हें लोक में भी फायदा होगा और ध्यान भजन में भी लाभ होगा।

"जयगुरुदेव" नाम धुनि पर परम पूज्य "गुरुजी महाराज" की बड़ी भारी दया मौज़ की बरसात पूज्य "महाराज जी" के द्वारा बरस रही है। इस बात के अनेकों प्रमाण मिल रहें हैं। यह सभी फायदे कब मिलेंगे? जब शंका नहीं होती है। क्यों की परम पूज्य "स्वामी जी" ने कई बार कहा कि शंका मत करो। शंकाओं से सब कुछ बर्बाद हो जाता है।
अब आज कई सारे पुराने सत्संगी प्रेमी कहते हैं कि हमने जबसे नामदान लिया तब से "जयगुरुदेव" नाम को लेते हैं, परन्तु हमें जो लाभ होना चाहिए? वह नहीं हुआ है। अब यह "जयगुरुदेव" नाम की अखण्ड धुन का जाप करने से क्या फायदा होगा?

ऐसे तमाम पुराने सतसंगी प्रेमियों के लिए पूज्य संत "बाबा उमाकान्त जी महाराज" सतसंग में एक दृष्टांत फरमातें हैं कि;
सज्जन और धार्मिक प्रवृत्ति वाले एक राजा ने अपने राज्य में बड़े पहुंचे हुए महात्मा की चर्चा सुन कर उनके दर्शन दीदार करने का मन बनाया।

जब राजा सुबह-सुबह महात्मा के दरबार में पहुंचे तब महात्मा जी किसी गांव में सत्संग करने के लिए जा रहे थे। राजा ने दर्शन किये और आत्म धन मांगा। महात्मा बोले राजन् अभी मैं सतसंग देने जा रहा हूँ, वापसी में आपके मिलूंगा तब कुछ दूंगा। अब राजा तो राजा ठहरे। कहा नहीं हमें तो अभी नाम दीजीए हम बहुत परेशान हैं। तब महात्मा जी ने राजा से कहा अच्छा तो जाओ राम-राम जपना। इतना कहकर चल दिए।

संत महापुरुष कभी झूठ बोलते नहीं और धोखा किसी को देते नहीं। महात्मा लौटकर वापस आये तो राजा से मिलने पहुँचे। पूछा कि राजन! जो नाम हमने बतलाया वह जपा की नहीं। तब राजा ने सही सही कहा कि हमें शंका हो गयी है कि जब से होश संभाला तबसे राम-राम बोला पर अभी तक कुछ भी लाभ नहीं हुआ इस लिए मैंने आपके कहने पर राम-राम नाम तो नहीं जपा है।

अब भरे दरबार में महात्मा जी ने क्रोध कर सामने खड़े सिपाही को कहा कि राजा ने हमारा कहा नहीं माना है इन्हें गिरफ्तार करो।सिपाही खड़ा रहा तो महात्मा जी ने फिर दो तीन बार आदेश दिया, लेकिन सिपाही ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अब राजा को भी क्रोध गया और उसने सिपाही को कहा कि महात्मा को हथकड़ी लगा दो। सिपाही ने तत्काल आदेश का पालन किया। तब महात्मा जी हंस कर बोले राजन्! अभी मैंने कहा तो इस सिपाही ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और आपने कहा तो इसने तत्काल आदेश का पालन किया।

क्यों? तब राजा बोला अरे! आप इतना भी नहीं जानते कि मेरे कहने बोलने में पाॅवर है, शक्ति है, ताक़त है। अब महात्मा जी ने समझाया कि अगर आप मेरे कहने मात्र से राम-राम का जाप करने लग जाते तो अभी तक आपका काम बन जाता। क्योंकि हमने कहा है तो उस नाम में पावर है, शक्ति है, ताक़त है।

राजा ज्ञानी था, वह समझ गया और महात्मा जी के आदेश का पालन करने का वचन दिया। इसलिए प्रेमियों वक़्त के संत-सतगुरु परम पूज्य "बाबा उमाकान्त जी महाराज" द्वारा दिये गये "जयगुरुदेव" नामधुनि के अखण्ड जाप के आदेश पालन में ही सभी जीवों का बचाव है, रक्षा है, क्योंकि;

'नाम रहा संतन आधीना, संत बिना कोई नाम चिन्हा'

" जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव "

(श्री हुकुम श्रीवास/प्रांतीय महामंत्री/बाबा जयगुरुदेव संगत/मध्यप्रदेश के फेसबुक पेज से कापी की गयी है।)

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