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Jaigurudev laghu satsang




!! जयगुरुदेव !!

सतगुरू तथा शब्द केवल ये दो ही जीव के सच्चे साथी हैं जो कि यहां और इसके बाद भी साथ रहते हैं। शेष सभी संबंधी स्वार्थ के संगी होते हैं और उनका प्यार हमें इस दुनिया में वापस लाता है। गुरू जैसा शुभचिंतक हमारे जीवन में कोई नहीं हो सकता है

गुरु के प्रति प्रेम बनाए रखने के लिए हमारे प्रेम को लगातार खुराक की ज़रूरत होती है। बग़ैर ईंधन के आग की तरह वह बुझ सकता है। भजन सिमरन वह ईंधन है जो इस आग को जलाए रखता है। इसलिए भजन में एक दिन का भी नागा करो। भजन में एक दिन की लापरवाही हमारे सफ़र की प्रगति को एक महीना पीछे कर देती है।

जब हम सारी दुनिया में से मोह और प्यार को निकालकर सतगुरू से प्यार करते हैं, जब दुनिया को छोड़कर उनको अपना बना लेते हैं, हम उनके बन जाते हैं। तब हमें अपने करमों फ़िकर नहीं होती सतगुरू को हमारे करमों का फ़िकर होती है।

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