aatma man aur maaya
अमृत बेले मे
जब सतगुरू आवाज देते
है तो उनके
साथ, काल पुरूष
भी होता है।
कुछ रूहे तो
है उठ जाती है,
ओर कुछ फिर
सो जाती है
।सो ऐसे भी एक
बार सतपुरूष ओर
काल जब रुहो
को जगाने के
लिये निकले तो
किसी ने काल
से पूछा कि
है तुम्हारी
चादर मे छेक
कैसे पड़े तो
काल बहुत शर्मिंदा हुआ
कहा जब सतगुरू
रुहो को जगाते
हैं तो मै
अपनी चादर सब
रुहो पर ढक
देता हू उन
मे से कुछ
रुहे उस चादर
मे से निकल
कर भजन सिमरन
के लिये उठती
है,तो मेरी
चादर मे छेक
पड़ जाते है
सो बाबा जी
कहते है ना
भाई मन नू
मारना सिखो सो
काल की मन
रुपी चादर को
उखाड़ फेंको ओर
अमृत बेला मे
भजन सिमरन करके
भव सागर पार
हो जावों जी
।
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▫कर्मों का हिसाब
तो हमको देना
ही है, क्योंकि
जैसा बीज बोएंगे
वैसी ही फसल
काटनी पड़ेगी।
▫ हम अपने
रोजमर्रा के जीवन
में अपने पेट
की खातिर, बाल-बच्चों के कारण
कई ऐसे गुनाह
कर बैठते हैं,
जिनका हिसाब तो
हमें ही भुगतना
पड़ेगा।
▫ अंत समय
में कोई साथ
नहीं जाता। यार
दोस्त भी श्मशान
तक साथ जाएंगे।
धन-दौलत भी
मरने के बाद
यही छूट जाएगी,
साथ चलने वाले
हमारे कर्म हैं,
जो साथ चलेंगे।
▫इसलिए जो बीत
गया, उसको याद
करके दुखी होकर,
हम आज के
पलों को जो
बाकी हैं, उनको
यूं ही न
गवां दें।
बल्कि पिछले व्यर्थ
गए पलों से
हम सीख लेकर
वर्तमान में नए
कर्म न बनने
दें।
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आत्मा मन और
माया के जँगल
मेँ ऐसी भटक
जाती है कि
इसे निर्मल रुहानी
देश "सचखँड" को जानेवाले
"नाम" रुपी 'राजमार्ग' का
पता ही नहीँ
लगता । "शब्द"
के बिना आत्मा
अन्धी है , फिर
यह जाये कहाँ
? इसीलिये यह बार
बार ठोकरेँ खाती
है , माया का
शिकार होती है
।कबीर साहिब की
वाणी है :-"शबद
बिना सुरति आँधरी,कहो कहाँ
को जाय द्वार
न पावै शबद
का फिरि फिरि
भटका खाय
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