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Swameji ne kaha kee



स्वामीजी ने कहा की
आप दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ भजन करेँगे तब भजन बनेगा।
संकल्प शक्ति द्दारा ही इस मार्ग मेँ सफलता हासिल की जा सकती है।दोनो आंखे के पीछे तीसरा  तिल है।तीसरे तिल मेँ पहुंचने से बुरी प्रवूत्तियोँ से नफरत हो जाती है और नाम के प्रति रुचि हो जाती है।नाम के संगीत मेँ वो मिठास है जिसको चख कर मन उसका रसिया हो जाता है ।सहसदल कंवल मेँ यानी ईश्वर के धाम मेँ पहुंचने पर बुरी प्रवृत्तियां एकदम खत्म हो जाती हैँ और उनके ऊपर पूरे तौर से विजय प्रप्त हो जाती है।यहां पहुंच जाने के बाद निचले केन्द्रोँ पर चलने वाली काम की ज्वाला सदा के लिए बुझ जाती है।

खान पान का असर भजन पर जरूर पड़ेगा। विचार के बाद ही किसी का अन्न ग्रहण करना चाहिए।यदि दृषित अन्न का सेवन किया है तो उस दिन भजन मेँ समय अधिक देँ।भजन ध्यान सुमिरन से ही कर्म उड़ाये जाते हैँ। कर्मो का विधान बडा जटिल है। जो ऊँचे साधक होते हैँ वही समझते हैँ।सत्संग बराबर मिलता रहेगा तब बातेँ समझ मेँ आएंगी। जयगुरुदेव
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जब शिष्य ने अपने आप को सतगुरु के हवाले कर दिया, अब सतगुरु को ही उसके काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को दूर करना है..!!!
   इसी तरह मन और इंद्रियों वगैरह की जितनी बीमारियां हैं, सतगुरु को ही दूर करनी हैं...!!
    सतगुरु वह चीज देता है, जिसे पाकर हमारे सारे दुख दूर हो जाते हैं...!!!
    उसने उसका इलाज क्या रखा हुआ है..??
 "भजन और सिमरन"
  जिस तरह मां अपने छोटे बच्चे का ख्याल रखती है, इसी तरह सतगुरु शिष्य की संभाल करता है...!!!!
    यूं तो सतगुरु जिस दिन 'नाम' देता है, उसी दिन से शिष्य को अपना बना लेता है, और इसके हर काम में मदद करता है...!!!
   लेकिन शिष्य को कोई खबर नहीं...!! सतगुरु एहसान करके बताता नहीं, यह उसका उसूल है...!!
   इसका यह मतलब नहीं, कि वह मदद नहीं करता, नहीं...!!  वह जरुर मदद करता है, मगर शिष्य को खबर नहीं होती....!!!!!
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ये प्यास कब भुजेगी...
कूआँ खोदना हो तो जब तक अच्छे से पानी नहीं जाता है तो कुऐं की खुदाई जो है जारी रखनी पड़ती है , और पानी जाने पर हम अपनी प्यासी तृष्णा को शान्त कर सकते हैं ....
ठीक उसी तरह हमें भी भजन-सिमरन ,शब्द की कमाई रूपी खुदाई तब तक जारी रखनी होगी जब तक की आत्मा रूपी खुदाई परमात्मा रूपी पानी से मिल सके ....और जन्मों-जन्मांतर की प्यास भुजे .....
एक बार अगर ये प्यास भुज गयी तो फिर  कभी भी आत्मा को फिर से किसी भी प्रकार की प्यास नहीं लगनी है ... क्योंकि हमेशा हमेशा के लिये प्यासी आत्मा , परमात्मा रूपी समुन्दर में जो समा जायेगी....
तो हमें चाहिये कि खुदाई जारी रखें ....जारी रखें.....जारी रखें....सिर्फ 2:30 घंटे रोज़ाना.....

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काल इतना चतुर ओर चालक है कि बिचारे जीव को बारबार गिराने की कोई कसर नही छोड़ता है , जब जीव भक्ति करने लगता है ,गुरु की दया से जीव को जब साधना में अनुभव होने लगते है, जीव जब धीरे धीरे जागृत होने लगता है, तब काल साधक को गिराने की बहुत से प्रबन्द करता है , काल की पूरी नजर साधक पर होती है उसकी पूरी कोशिश होती है कि साधक को कैसे भी हो पर गिर दिया जाय, यह से निकलना नही चाहिए , 


जब साधक पहले धन, दौलत, कामवासना, मोह, सुख खोजना, इसके पीछे भागता था ये सब चीज उससे दूर भागती है पर जब साधक साधना के दौरान, उसकी इच्छा संसार से कम होने लगती है और गुरु की प्रीत ज्यादा होने लगती है, ओर भजन बनने लगता है तब काल साधक को जान बूज कर संसारी की चीजें देता है , धन,दौलत,माया,स्त्री सुख, तब ये सब साधक के पीछे भागती साधक गिरने के लिए  साधक ने अगर इसको पकड़ा जरा सी भी गलती हुई कि फस गया और गीर जाता है इस लिए बहुत सोच समझ कर मन की निरख परख करते है समझना है

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