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maut kisee ko nahin




*नामदान की विधि,विधिवत दी समझाय।
सुमिरन,ध्यान, भजन,गुप्तहिं प्रकट कराय।।
गोपनीय राखो इसे,जैसे खसम की भेंट।
किसी यार को देदिया, सब कुछ मटियामेट।।
प्रेम निशानी जो मिली,निरख परख नित होय।
रोज सहेजो जगह पर भूल,भरम नहिं होय।।*
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मौत किसी को नहीं छोड़ती..!  सौभाग्यशाली हैं वे जीव, जिन्होंने 'जीते-जी' मरने की विधि सीख ली है..!!
  वे नित्य मरते हैं, क्योंकि उन्होंने "सुरत शब्द योग" का अभ्यास करके शरीर को खाली करने और अंतर में गुरु से मिलाप करने की युक्ति जान ली है..!!  
   वे आत्माएं अखंड सौभाग्यवती हैं.....
   क्योंकि उन्होंने इसी जीवन में अपने 'पति' को पा लिया है, उससे उनका पूर्ण मिलन हो गया है..!!
   'नाम' से जुड़ा हुआ जीव ही सच्चा ज्ञानी है, 'नाम' उसे छोड़ता नहीं और अपने साथ 'सचखंड' ले जाता है..!!!

- गुरु अमरदास जी महाराज-

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