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seva ka laabh kaise hota hai




सेवा का लाभ कैसे होता है
हमारे कर्म कितने गहरे हैं यह हम नही जानते। कई ऐसे छोटे छोटे कर्म भी होते हैं जिनके भुगतान के लिये हमें दुबारा इस संसार में आना पड़े।
पर सतगुरु नही चाहते कि हम यहां इन छोटे छोटे कर्मों की वजह से यहां आयें इसिलिये ही सतगुरु हमसे सेवा करवा कर इन कर्मों का भुगतान करवा देते हैं।
जैसे कचरे का ढेर पड़ा हो तो उसमें कई तरह की चीजें रहती है अच्छी भी खराब भी, पर हम उसे कचरा ही कहते हैं, जबकि कबाड़ी उसमें से छांट कर अलग अलग करके दोनो की कीमत वसूल करता है।
हमारे भी संचित कर्मों का ऐसा ही पहाड़ बना हुआ है जिसमें शुभ अशुभ दोनो ही कर्म हैं।
जब हम डेरे में सेवा करते हैं, मान लो हमने रोड बनाने की सेवा की। प्रोग्राम के समय कई संगत उस पर चलती है, उनमें कई रुहें ऐसी भी होती हैं जिनके हम कर्जदार हो।
यह हम नही जानते पर मालिक को सब पता होता है।
न सिर्फ रोड की सेवा, बल्कि डेरे हर सेवा में, प्याऊ, लंगर, कैंटिन, सिक्युरिटी, मोटर, सायकल स्टेंड, टॉयलेट, लॉन, पंडाल, ट्रांसपरंट, ट्रेफिक, बुक स्टॉल, पाठी आदि तरह की हर सेवा जो भी होती हैं, सब में यह नियम लागू होता है।
यही नही बल्कि जो भी जिस घर से सेवा पर  जाता है, उसके घर वालों को भी उसका फायदा होता है, क्योंकि कुछ उस सेवादार की जिम्मेदारियां भी उसके घर वालों ने ली हैं तो सेवा का फल उन्हें भी जरुर मिलना है।
बाबाजी ने फरमाया था, *जब आपको पता हो जाये कि इस सेवा का क्या लाभ होता है तो आप सबकुछ छोड़कर सेवा में लग जाओगे।
राधा सवामी जी...
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एक दिन आंटी को सतसंग मे सेवा का हुकुम आया आंटी सेवा में चली गयी । थोड़ी देर बाद आंटी को फ़ोन आया की
उसके बेटे का ऐक्सिडेंट हो  गया वो आंटी सेवा पूरी करके हॉस्पिटल पहुँची
आंटी ने सिमरन किया गुरुजी के आगे अरदास की । आंटी की पड़ोसन जो उनकी दोस्त भी थी  बोली बहन तेरे गुरु जी कैसे है तू दिन रात सेवा में लगी रहती है और उन्होंने क्या किया......
तेरे बेटे का ऐक्सिडेंट हो गया वो आंटी बोली मुझे अपने गुरुजी पर पूरा भरोसा है वो जो करते है सही करते है इसमें भी कोई बात होगी मेरे गुरुजी कभी किसी का बुरा नही करते जो होता है अच्छा होता है
कुछ दिनो बाद बच्चा ठीक हो गया आंटी फिर से सेवा में लग गयी फिर कुछ दिन बाद पता चला की बेटे का
फिर ऐक्सिडेंट हो गया है.....
अब पड़ोसन फिर कहने लगी बहन तुझे तेरे सतगुरु ने क्या दिया तो आंटी बोली कुछ घटनाएँ हमें भरमानेके लिए भी होती है
ज़रुर मेरा गुरुजी मुझे कुछ समझाना चाहता है मैं भ्रम में नही आऊँगी आंटी सिमरन करती रही गुरुजी के सामने
अरदास करती रही......
धीरे धीरे बेटा फिर ठीक हो गया । अब बेटे का तीसरी बार फिर ऐक्सिडेंट हो गया तो पड़ोसन बोली बहन तू नही मानेगी लेकिन तू मुझे अपने बेटे की कुंडली दे मैं अपने महाराज को दिखाऊँगी तो आंटी बोली ठीक है
तू भी अपनी तसल्ली कर ले लेकिन मेरा विश्वास नही डोलेगा गुरुजी सब ठीक कर देंगे
अब पड़ोसन कुंडली लेकर अपने पंडित के पास गयी और बोली महाराज इस बच्चे का बार बार ऐक्सिडेंट हो जाता है कुछ उपाय बताइए महाराज बोले ये क्या ले आयी बहन  जिस किसी की भी ये कुंडली है वो तो कई साल पहले मर चुका है
तो बहन बोली नही महाराज मेरी सहेली का बेटा है और अभी ज़िंदा है पर बार बार चोट लग जाती है
पंडित जी बोले जो भी है..... उसकी मृत्यु कई साल पहले हो जानी चाहिए थी जरुर कोई शक्ति है जो उसे बचा लेती है।
साध संगत जी वो बहन की आँखें भर गयी दौडी दौड़ी उस आंटी के पास आकर चरणो में गिर गयी बोली बहन मुझे भी अपने गुरुजी के पास ले चल
पूछने पर सारी बात बताई और फिर बहन ने भी नाम ले लिया और सेवा करने लगी।

साध संगत जी कहने का भाव ये है की हमारा विश्वास कभी नही डोलना चाहिए *गुरुजी हर पल हमारी रक्षा करते है।....

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