Ads Top

kalayug mein naamayog baba jaigurudev




कलयुग में नामयोग (सुरत-शब्द-योग) की साधना
बाबा जयगुरुदेव-
   सात सौ वर्ष पहले संतों का आना यहां शुरू हुआ। उसके पहले अन्य युगों की कठिन साधनायें थीं। जब समय का परिवर्तन हुआ उम्र, शक्ति मानसिक क्षमता कम होती गई तो साधनाओं और क्रियाओं का भी बदलाव होता रहा। कलयुग में सन्तों का आना जब शुरू हुआ तो उन्होंने पिछले युगों की कठिनतर साधनाओं और क्रियाओं को खारिज कर दिया। कलयुग में सुलभ 'नाम योग की साधना' का रास्ता खोला जिसे 'सुरत शब्द योग' मार्ग भी कहते हैं।
   नामयोग का मतलब कि जो आवाज, जो वाणी, जो शब्द ऊपर से रहा है उसके साथ जीवात्मा का गठबंधन हो जाये और शब्द को पकड़कर सुरत (जीवात्मा) सुनते-सुनते उसी में लय हो जाये यानी उसी का रूप धारण कर ले।
   हर युग में अलग-अलग साधना थी। सतयुग में ध्यान करते थे, त्रेता में तप करते थे, द्वापर में यज्ञ हवन था। कलयुग में तीनों युगों की साधना खतम कर दी महात्माओं ने, क्योंकि तो आप में अब शारीरिक बल है, मानसिक बल है, चरित्र का बल है। इसलिए अब वो साधना आप नहीं कर सकते हो उससे कोई लाभ नहीं होगा।
   सतयुग में ध्यान योग से, त्रेता में तप से, द्वापर में यज्ञ हवन से जो फल लोगों को मिलता था वो कलयुग में नाम की साधना करके बहुत आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। नामयोग सहज योग है इसी से सब प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हो जाती है। सन्तमत में सिद्धि का उपयोग साधकों को नहीं करने दिया जाता है, क्योंकि उसमें वो अपना नुकसान कर लेंगे। इसलिए सतगुरू नियंत्रण में रखते हैं।
   सतयुग, त्रेता, द्वापर में ध्यान योग की साधना थी। अन्तर्दृष्टि से देखने की। नामयोग की साधना इन तीन युगों में नहीं थी। मण्डलों में जाने की ध्यान योग की साधना लोग करते थे। पुरानी जितनी भी धर्म पुस्तकें योगियों, ज्ञानियों की हैं उनमें नाम योग की साधना नहीं है। कलयुग में सन्त प्रकट हुए। सन्तों ने नामयोग की साधना यानी शब्दयोग को बताया। जीव नामयोग की साधना से अपने स्थायी घर (सत्तलोक) पहुंचकर मालिक (सत्तपुरूष) का दीदार करेगा।
   कलयुग में 'सुरत शब्द योग' मार्ग ही सार मार्ग है। यज्ञ, दान और कथा कुछ फल देगी।
#jaigurudevaawaz

No comments:

Copyright Reserved to Anything Learn. Powered by Blogger.