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Simaran aur dhyaan




सिमरन करने की हरेक को कुदरती आदत पड़ चुकी है। हम कभी एक मिनट के लिए भी सिमरन के बिना नही रह सकते, कोई बाल-बच्चो का सिमरन करता है, कोई घर के कामकाज का,कोई दफ्तर,खेती या कारोबार का सिमरन करता है। जिसका भी हम सिमरन करते है, उसकी शक्ल हमारी आँखों के सामने आकर खड़ी हो जाती है।अगर बच्चो का सिमरन करते है, उनको याद करते है,उनकी शकलें आँखों के आगे आ जाती है।अगर घर के कामकाज के बारे में ख्यालआता है तो घर के कारोबार आँखों के आगे आने शुरू हो  जाते है। इसको महात्मा ध्यान करना कहते है।जिसका हम सिमरन करते है उसका ध्यान भी करना शुरू कर देते हैं।जिन जिन शक्लों और पदार्थों का सिमरन और ध्यान पकता जाता है, उनके साथ हमारा मोह या प्यार भी पैदा हो जाता है।सिमरन और प्यार के ज़रिये हमारा उनके साथ इतना लगाव और प्यार पैदा हो जाता है कि रात को सपने भी हमें उनके आने शुरू हो जाते है।मौत के वक़्त उनकी ही तस्वीरें हमारी आँखों के आगे आकर खड़ी हो जाती हैं और मौत के समय हमारा जिस और भी ख्याल होता है, उसी रौ (धारा) में हम बहना शुरू कर देते है। जहाँ आसा तहाँ  बासा। मौत के बाद मोह और प्यार के बंधें हम बार बार दुनिया में आते है और चौरासी के चक्कर में फँसे रहते है।
इसलिए महात्मा समझाते हैं कि सिमरन और ध्यान की हमें क़ुदरती आदत पड़ी हुई है। इसलिए इस क़ुदरती आदत से फायदा उठाओ और दुनिया के सिमरन और ध्यान पर मालिक के नाम का सिमरन और ध्यान करो, क्योंकि सिमरन को सिमरन काटेगा और ध्यान को ध्यान काटेगा और। पानी की मारी हुए खेती पानी से ही हरी-भरी होती है। दुनिया की नाशवान चीजों का सिमरन करके हम उनसे मोह या प्यार किये बैठे हैं।
उनमें से कोई भी चीज़ हमारा साथ देने वाली नही है।
उनका । मोह या प्यार हमें बार बार देह के बंधनों की ओर ले आता है। हमें चाहिये कि उस मालिक के नाम का सिमरन और ध्यान का सिमरन करें जो फ़ना नही होता, जिसकी हमारी आत्मा अंश है और जिसके अंदर वह समाना चाहती है।

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