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Seva simaran aur satsang




सेवा सिमरन और सत्संग  करने के बावजूद भी अगर जीवन में सुख नहीं आया तो क्या कारण है ? दूसरों की निंदा, बुराई, ईर्ष्या, द्वेष, गाली-गलोच, लालच जीवन में अभी भी हैं तो कारण क्या है ? इसका मतलब जैसे हुजूर बाबा जी कहते हैं कि एक चलना भी वो है जिसके कारण मंजिल पर पहुँचते हैं और एक चलना कोल्हू के बैल का भी जो चलता तो है पर कहीं पहुँचता ही नहीं है कहीं ऐसा तो नहीं है कि मेरी सेवा, सिमरन और सत्संग कोल्हू के बैल की तरहा हो रही है जिसके कारण मेरे जीवन सुख नहीं है जीवन में बदलाव है अगर ऐसा ही है तो क्यों है ? कारण एक ही है अभी पूर्ण समर्पण नहीं हुआ अर्थात जीवन में समर्पण की कमी है.

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हुजूर महाराज जी से किसी ने पूछा  महाराज जी भजन सुमिरन के लिये उचित वातावरण का निमांण किस प्रकार किया जाए हुजूर महाराज जी ने फरमाया.

सन्तमत की पुस्तके पढकर सत्संग मे जाकर सत्संगियो से मिलकर उनसे सन्तमत की शिक्षाओ के विषय मे बातचीत करके और एक दूसरे के लिए शक्ति और सहायता का स्रोत बन कर हम यह वातावरण पैदा करने की कोशिश कर सकते है ये सब बाते अभ्यास के लिए वातावरण तैयार करने मे सहायक होती है हम संगति से सदा प्रभावित होते है अगर बुरे लोगो के साथ मिलना जुलना शुरू करेगे तो उन्ही की तरह सोचने लग जायेगे अगर अच्छे और नेक पुरूषो की प्रभु के भक्तो की संगति करेगे तो उन्ही की तरह सोचने लगेगे क्योकि संगति का हम पर हमेशा गहरा प्रभाव पडता है इस भ्रकार हमे भजन समिरन के लिए उचित वातावरण बनाना है एक दूसरे को प्रेम और भक्ति से भर देना है.

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