balidaan kee jeet
बलिदान की जीत
(शाकाहारी पत्रिका अगस्त 1971 अंक
13 से साभार)
एक दिन एक
शिकारी शिकार के लिए
जंगल में गया
|
उसने एक हिरण
को निशाना बना
कर तीर छोड़ा
पर वह तीर
हिरण को न
लगा और एक
कबूतर बीच में
आ गया |
तीर कबूतर को लगा
और वह गिर
कर मर गया
|
शिकारी ने दूसरा
तीर चढ़ाया और
छोड़ दिया, फिर
एक कबूतर बीच
में आ गया
|
इस तरह शिकारी
ने सात तीर
हिरणों को मारने
के लिए चलाए
,
पर सातों बार एक-एक कबूतर
बीच में आता
गया और मरता
गया |
शिकारी यह देखकर
झुंझला उठा |
एक महात्मा
उधर से आ
रहे थे | उनकी
द्रष्टि मरे हुए
कबूतरों पर पड़ी
!वे ठिठक गये
और
शिकारी से बोले---तुमने किसी जानवर
पर तीर चलाए
होंगे और ये
कबूतर हर बार
बीच में आ
गए होंगे |
शिकारी आश्चर्य से
बोला-‘हां महाराज
! बिलकुल यही बात
है |’
महात्मा की आखों
में आँसू आ
गए और वे
बोले---कल भी
कबूतरों ने ऐसा
किया था | एक
शिकारी आया था,
उसने भी हिरण
को मारना चाहा
था ,पर कबूतरों
ने अपने प्राण
को त्याग कर
उसे बचा लिया
| यह पक्षी होकर
इतना ज्ञान रखते हैं
कि अपना जीवन
दूसरों की रक्षा
के लिए न्योछावर
करते हैं ,परन्तु
हम मानव जीवन
को प्राप्त करके भी
प्रत्येक दिन दूसरों
के जीवन को
समाप्त कर देने
कि लालसा रखते
हैं और करते
भी हैं |
महात्मा की बात
सुनकर उस क्रूर
शिकारी का ह्रदय
द्रवित हो उठा
और उस दिन
से उसने हिंसा
करना छोड़ दिया
|
……………………………………………………………………………………
जब भी बैठो
मालिक के आगे
अरदास करो कहो
हे परमात्मा मेरा
भजन सिमरन मे
मन लगे ,अंदर
का रस आये,
मेरे मे इतनी
ताकत नही है
कि मैं भजन
सिमरन पर बैठ
सकु तू ही
मुझे नींद से
उठा कर भजन
सिमरन पर बैठा
सकता है,मेरे
मे हिम्मत नहीं
है कि मैं
खुद उठ सकु
राधा स्वामी
………………………………………………
ईश्वर का वास...
एक सन्यासी घूमते-फिरते
एक दुकान पर
आये, दुकान मे
अनेक छोटे-बड़े
डिब्बे थे, एक
डिब्बे की ओर
इशारा करते हुए सन्यासी ने दुकानदार
से पूछा, इसमे
क्या है? दुकानदारने
कहा - इसमे नमक
है!
सन्यासी ने फिर
पूछा, इसके पास
वाले मे क्या
है? दुकानदार ने
कहा, इसमे हल्दी
है!
इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते
गए और दुकानदार
बतलाता रहा, अंत
मे पीछे रखे
डिब्बे का नंबर
आया, सन्यासी ने
पूछा उस अंतिम
डिब्बे मे क्या
है? दुकानदार बोला,
उसमे राम-राम
है!
सन्यासी ने पूछा,
यह राम-राम
किस वस्तु का
नाम है !
दुकानदार ने कहा
- महात्मन! और डिब्बों
मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं,
पर यह डिब्बा
खाली है, हम
खाली को खाली नही कहकर
राम-राम कहते
हैं !
संन्यासी की आंखें
खुली की खुली
रह गई ! ओह,
तो खाली मे
राम रहता है
!भरे हुए में
राम को स्थान
कहाँ ?
लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष
और भली-बुरी
बातों से जब
दिल-दिमाग भरा
रहेगा तो उसमें
ईश्वर का वास
कैसे होगा ?
राम यानी ईश्वर
तो खाली याने
साफ-सुथरे मन
मे ही निवास
करता है ! एक
छोटी सी दुकान
वाले ने सन्यासी
को बहुत बड़ी
बात समझा दी!
राधा स्वामी जी
…………………………………………………………………………………………
सत्संग का फल
एक चोर राजमहल
में चोरी करने
गया, उसने राजा-रानी की
बातें सुनी ।
राजा रानी से
कह रहे थे
कि गंगा तट
पर बहुत साधु
ठहरे हैं, उनमें
से किसी एक
को चुनकर अपनी
कन्या का विवाह
कर देंगें ।
यह सुनकर चोर
साधु का रुप
धारण कर गंगा
तट पर जा
बैठा । दूसरे
दिन जब राजा
के अधिकरी एक-एक करके
सभी साधुओं से
विनती करने लगे
तब सभी ने
विवाह करना अस्वीकार
किया । जब
चोर के पास
आकर अधिकारियों ने
निवेदन किया तब
उसने हां ना
कुछ भी नहीं
कहा । राजा
के पास जाकर
अधिकारियों ने कहा
कि सभी ने
मना किया, परंतु
एक साधु लगता
है, मान जाएंगे
। राजा स्वयं
जाकर साधुवेषधारी चोर
के पास हाथ
जोडकर खडे हो
गये एवं विनती
करने लगे ।
चोर के मन
में विचार आया
कि मात्र साधु
का वेष धारण
करने से राजा
मेंरे सामने हाथ
जोडकर खडा है;
तो यदि मैं
सचमुच साधु बन
गया,तो संसार
में ऐसी कोई
भी वस्तु नहीं,
जो मेरे लिए
अप्राप्त होगी ।
उसने विवाह के
प्रस्ताव को अमान्य
कर दिया एवं
सच्चे अर्थ में
साधु बन गया
। उसने कभी
भी विवाह नहीं
किया एवं साधना
कर संतपद प्राप्त
किया । मात्र
कुछ समय के
लिए साधुओं के
जमावडे में बैठने
का प्रभाव इतना
हो सकता है,
तो सत्संग का
प्रभाव कितना होगा.
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