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sant kabeer saahib ka kathan


संत कबीर साहिब का कथन है
लाख कोस जो गुरु बसें  दीजै सुरत पठाय..
शब्द तुरी असवार ह्वै,पल-पल आवै जाय...!
यानी अगर तेरे मुर्शिद (सतगुरु) बहुत दूर बस्ते हों तो तू उनका ध्यान कर। तेरी सुरत (आत्मा) शब्द के घोड़े पर सवार होकर अपनी इच्छा से उनके पास और जा सकती है। सभी बाधाओं को दूर करते हुए, अभ्यासी ध्यान की अगली और आखरी मंज़िल पर पहुंचकर अपने अंदर परमात्मा का दीदार करने के योग्य बन जाता है। हज़रत सुल्तान बाहू कहते हैं कि इस शरीर रूपी नगर के हृदय रूपी मोहले में मैंने अपने मित्र अर्थात गुरु को बसा लिया है। उसकी कृपा से मालिक मेरे दिल में प्रकट हो गया है....मुझे तस्सली हो गई कि मनुष्य चोले में आने का मेरा मकसद पूरा हो गया।
     जयगुरुदेव..!
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गुरू से शिष्य ने कहा: गुरूदेव ! एक व्यक्ति ने आश्रम के लिये गाय भेंट की है। गुरू ने कहा - अच्छा हुआ दूध पीने को मिलेगा। एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू ! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय वापिस ले गया गुरू ने कहा - अच्छा हुआ ! गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिली। 'परिस्थिति' बदले तो अपनी 'मनस्थिति' बदल लो। बस दुख सुख में बदल जायेगा. "सुख दुख आख़िर दोनों मन के ही तो समीकरण हैं। "अंधे को मंदिर आया देखलोग हँसकर बोले -"मंदिर में दर्शन के लिए आए तो हो,पर क्या भगवान को देख पाओगे ? "अंधे ने कहा -"क्या फर्क पड़ता है,मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा." द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए। 
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संसार के सब जीव व्यर्थ ही भटकते फिर रहे हैं..!!
 पग पग पर निराशा का, असफलता का मुंह देखना पड़ता है..!! हम धन-संपत्ति बाल बच्चों के लिए रोते पीटते उम्र बिता देते हैं, तथा इन्हें खोकर दुखी होते हैं..!!
   परंतु "यदि हमने प्रभु के प्रेम और विरह में एक रात भी आंसू बहाए होते, तो निश्चय ही हमें 'प्रभु' के दर्शन हो जाते..!!
    हम उन बेगारियों की तरह सारा जीवन बेकार गवा देते हैं, जो दिन भर परिश्रम करके खून पसीना एक कर देते हैं, परंतु शाम को खाली हाथ घर लौट आते हैं..!!
   इस प्रकार हम मनुष्य जीवन का असली उद्देश्य पूरा नहीं कर पाते और लोक और परलोक दोनों ही गंवा बैठते हैं..!!!!
- गुरु अमरदास जी महाराज-
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सेवासिमरनऔर_सत्संग
करने के बावजूद भी अगर जीवन में सुख नहीं आया तो क्या कारण है ? दूसरों की निंदा, बुराई, ईर्ष्या, द्वेष, गाली-गलोच, लालच जीवन में अभी भी हैं तो कारण क्या है ? इसका मतलब जैसे हुजूर बाबा जी कहते हैं कि एक चलना भी वो है जिसके कारण मंजिल पर पहुँचते हैं और एक चलना कोल्हू के बैल का भी जो चलता तो है पर कहीं पहुँचता ही नहीं है कहीं ऐसा तो नहीं है कि मेरी सेवा, सिमरन और सत्संग कोल्हू के बैल की तरहा हो रही है जिसके कारण मेरे जीवन सुख नहीं है जीवन में बदलाव है अगर ऐसा ही है तो क्यों है ? कारण एक ही है अभी पूर्ण समर्पण नहीं हुआ अर्थात जीवन में समर्पण की कमी है.
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राधास्वामी जी!
परमात्मा से गहरा नशा करने वाली कोई अन्य चीज़ कहाँ ? जिसको परमात्मा की लगन लग गई..
जिसने एक बार परमात्मा के प्रेम का प्याला पी लिया फिर वह अमृत हो जाता है।
फिर उसकी मृत्यु नहीं होती। फिर वह तो बूढ़ा होता और मरता है। शरीर तो बूढ़ा होगा और मरेगा, मगर भीतर की अवस्था शाश्वत युवा है। उसे चेतन का बोध होने लगता है। जिसने प्रेम प्याला पी लिया, उसने अपने भीतर शाश्वत को जान लिया। वह अमर हो गया।
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राधा स्वामी जी आल संगत जी
---""सतगरु जी  का  लगातार  ध्यान  करना  ही  मालिक  का  दर्शन  करना  है  हम  भले  ही  सतगुरु  से  दूर  बसते  हैं  पर  उनका  ध्यान  करने  से  हमारी  आत्मा  शब्द  रूपी  घोड़े  पर  सवार  होकर  अपनी  इच्छा  से  उनके पास  जा  और    सकती  है  जब  शिष्य  हर  पल  अंदर  सतगुरु जी  के  ध्यान  में  लगा  रहता  है  तो  वह  मालिक  उसके  हृदय  रूपी  घर  में  ही  प्रगट  हो  जाता  है
गुरु  का  ध्यान  कर  प्यारे बिना  इसके  नहीं  छुटना
कर दो नाम दीवाना जी अब कर दो नाम दीवाना
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( कर्म )
 --कर्म की थप्पड़ इतनी भारी और भयंकर होती है कि - हमारा संचित पुण्य कब जीरो बेलेन्स हो जाए पता भी नहीं चलता है l पुण्य खत्म होने बाद समर्थ सम्राट को भी भीख मांगनी पड़ती है l इसलिए जब तक पंचेन्द्रिय सही सलामत है.....! स्वास्थ्य अच्छा है,... !  बुढ़ापा दस्तक दे..... उससे पहले सत्कर्म करके पुण्योपार्जन कर लीजिएl
जीवन का कटू सत्य है...... "कर्म" एक ऐसा रेस्टॉरेंट है जहाँ ऑर्डर देने की जरुरत नहीं है, हमें वही मिलता है जो हमने पकाया हैं !



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