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Lalach buri balay


Saakhi
एक रागी गुरु के दरबार में भजन गाता था, वह बहुत ही अच्छा गायक था और सारी संगत झूम उठती थी। उसके मन में एक बात थी कि वह दरबार पैदल आता है परन्तु उसके गुरु जी घोड़ी पर आते हैं, उसका मन करता था कि उसे किसी तरह वह घोड़ी मिल जाए। एक दिन वह दरबार में शब्द कीर्तन गा रहा था, उसने बहुत ही अच्छा गाया, उसके गुरु जी बहुत खुश हुए और उस से कहा, बोलो क्या मांगते हो, आज मैं तुम्हारे शब्द कीर्तन से बड़ा खुश हूँ। रागी तो इसी दिन का इंतज़ार कर रहा था, उसने तुरंत ही अपने गुरु जी की घोड़ी मांग ली। गुरु जी बोले, बस तुमने घोड़ी माँगी है, मैंने तो तुम्हे अपनी गद्दी देनी थी। मतलब यह है कि हमें अपने गुरु से कभी भी कुछ माँगना नहीं चाहिए क्योंकि पता नहीं उनके दिल में क्या है। हम कौड़ियां माँगना चाहते हैं और वह हमें करोड़ों देना चाहते हैं, हमें सब कुछ अपने गुरु जी की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए
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कथानक    लालच  बुरी बलाय
एक सेठ था। वह बर्तनों को किराये पर देता था      और उनसे कमाई करता था।एक बार किसी को किराये पर बर्तन दिये। वह इन्सान उससे बर्तन ले गया और किराया दे गया। लेकिन जब उसने बर्तन वापस लौटाये तो दो-तीन बर्तन    उसे फालतू दे दिये।
वह सेठ पूछने लगा कि क्या बात है?     तुमने ज्यादा बर्तन     क्यों दिये हैं?       वह आदमी कहने लगा    कि आपने जो बर्तन दिये थे,
 ये बर्तन उसकी सन्तानें है इसलिए इन्हें भी आप    सम्भाल लीजिए।
वह सेठ बड़ा खुश हुआ कि यह अच्छा ग्राहक है।    यह तो मुझे बहुत फायदा देगा।  किराया तो मुझे मिलेगा ही, साथ में फालतू बर्तन भी   मिलेंगे।   इस तरह चन्द दिन बीते,   ही आदमी फिर गया। लौटते समय फिर थोड़े बर्तन ज्यादा कर दिये और वही बात कही कि बर्तनों की सन्तान हुई है।
सेठ बड़ा खुश हुआ, चुपचाप सब बर्तन रख लिए।   एक महीने का समय डालकर वह आदमी सेठ      के पास फिर गया और कहने लगा कि मेरे यहां कुछ खास मेहमान आने वाले हैं, अतः कृपा करके आपके पास जो चांदी के बर्तन हैं,
वे मुझे दे दीजिए। पहले तो सेठ कुछ सोच में पड़ा, फिर सोचा कि मैंने पहले जितने बर्तन दिए, उनसे ज्यादा मुझे हासिल हुए। इस बार कुछ चांदी के बर्तन ज्यादा मिलेंगे। इसी तरह सोचकर उसने बर्तन दे दिये।
समय बीतता गया, पर वह आदमीबर्तन लौटाने नहीं आया। अब सेठ बड़ा परेशान हुआ वह उसके घर जा पहुंचा
 और उससे पूछा कि भले मानस!      तूने वे बर्तन वापस नहीं किए।
 वह आदमी बहुत ही मायूस सा होकर कहने लगा कि सेठ जी, क्या करें, आपने जो चांदी के बर्तन दिए थे, उनकी तो मौत हो    गई। सेठ को बड़ा गुस्सा आया,    कहने लगा कि क्या बकता है   मैं तुझे अन्दर करवा दूंगा,   कभी बर्तनों की भी मौत होती है।  वह आदमी कहने लगा "सेठ जी!
जब मैंने कहा था कि बर्तनों की संतानें हो रही हैं उस वक्त आप सब ठीक मान रहे थे। यदि बर्तनों की सन्तान हो सकती है तो वे मर क्यों नहीं सकते?"
  इसी तरह संसार की हालत है। माया के पीछे इन्सान इतना अन्धा हो जाता है कि उसे कुछ समझ नहीं आता।
                 संत  सतगुरु     
 हर कदम पर इन्सान को चेतावनी देते हैं कि हे इन्सान!     जिन महात्माओं के, जिन सन्तजनों के वचनों को सुनता है,पढ़ता है,
 तू इनके ऊपर सत्य को जानकर दृढ़ भी हो जा लालच में पड़कर सत्य का साथ छोड़
   नहीं तो बाद में पछताना पड़ेगा
बुरे कर्मों से बचो और बचाओ
मानव जीवन सफल बनाओ
बाबा उमाकांत जी महाराज उज्जैन आश्रम मध्य प्रदेश

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