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bhajan simaran ke lie amrit vele



सत्संग वचन सुबह या शाम का समय निश्चित करो भजन के लिए। उस समय पर पन्द्रह मिनट, बीस मिनट जरूर बैठो। पता नहीं कब मालिक की दया का ज्वार भाटा चले और तुम यहां से निकल जाओ। इतनी जोर की रफ्तार से वह ज्वार भाटा दया का चलता है कि जब घाट पर बैठे रहोगे तो एकाएक सुरत का खिंचाव हो जाएगा और तुम एकदम प्रकाश में खड़े हो जाओगे। पहला कदम तुम्हारा स्वर्ग में होगा। गुरू की अपार दया का परिचय तुम्हें मिलेगा। इसलिए जागकर रोज हाजिरी देनी चाहिए कि पता नहीं किस दिन और किस समय किस घड़ी में दया का वेग आ जाय। इसी प्रकार सुमिरन का भी समय निश्चित कर लेना चाहिए। सुमिरन चैबीस घण्टे में एक बार अवश्य करो और ध्यान भजन जब-जब मौका मिले तब-तब किया करो।
जब तुम्हें नामदान मिल गया है तो लगन के साथ भजन, ध्यान, सुमिरन करना चाहिए। यह दिखावे का काम नहीं है। भजन छुप कर एकान्त में करना चाहिए। जब तक सुरत (जीवात्मा) आंखो के ऊपर समिट कर खड़ी नहीं होती है यानी प्रकाश में खड़ी नहीं होती है तब तक तुम्हें जोश खरोश के साथ भजन करना चाहिए। जब अन्तर में प्रकाश प्रगट होता है, शब्द सुनाई देने लगता है तो स्वाभाविक रूप से मन ऊपर की ओर खिंचने लगता है क्योंकि शब्द में, नाम में मधुरता है आनन्द है आकर्षण है। नाम के प्रगट होते ही काम, क्रोध, लोभ मोह आदि मूर्छित होने लगते हैं। सत्संग में बराबर हाजिरी देते रहो। सत्संग से ही भजन में तरक्की होगी। आदतें जो पड़ गई हैं धीरे-धीरे छूट जायेंगी चिन्ता मत करो। नियम से साधना में लगे रहो, नागा न होने पावे।
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संतसत गुरु द्वारा भजन सिमरन के लिए अमृत वेले का उचित समय सुबह 3:00 से 5:30 बजे का होता हैं। क्योंकि अमृत का मतलब होता हैं रस और वेले का अर्थ हैं घड़ी व समय। यानि ये समय (3:00 से 5:30) ऐसा होता हैं जिस समय हमें सांसारिक कोई भी काम काज नहीं होता हैं और हर जगह शांति होती हैं और हमारा मन भी बिल्कुल शांत होता हैं। ऐसे समय में हमारा ध्यान भी भजन सिमरन में बहुत जल्दी लगता हैं और आंतरिक रस भी प्राप्त होता हैं। इसलिए यह समय सबसे उचित रहता हैं वैसे इस समय हम जीवों को नींद भी बहुत सताती हैं और मन भी नहीं लगता हैं। उसके लिए भी हुज़ूर महाराज जी ने कहा हैं कि भजन सिमरन में आपका मन लगे चाहे न लगे लेकिन तुम फर्ज समझ कर बैठों, डयूटी समझ कर बैठो। जो घड़ी दो घड़ी आप मालिक की याद में बैठोगे वो आपके लेखे में लिखा जायेगा एक जगह बड़े महाराज जी ने भी कहा हैं कि अगर आप सफल नहीं हो पाते हो तो आप अपनी असफलताओं को भी मेरे पास लाओ क्योंकि आपकी असफलता में ही आपकी सफलता छुपी हुई हैं।
उदाहरण के तौर पर जैसे स्कूल में बच्चे की क्लास शुरू होने से पहले अध्यापक बच्चों के नाम बोलता है। जिस बच्चे का नाम बोला जाता हैं, वो बच्चा ऊँची आवाज में जवाब देता हैं तो टीचर उसकी हाज़िरी लगा देता है अगर कोई बच्चा सो जाये और जवाब न दे तो उनकी गैर हाज़िरी लगती है एक बार गैर हाजिरी लग गयी तो फिर बाद में कोई सुनवाई नही होती रोज रोज गैर हाजिर होने से वो बच्चा एग्जाम में पास नही हो पाता इसी प्रकार सतगुरू जी सुबह अमृत वेले अपना रजिस्टर ले कर आते है जो प्रेमी जीव सिमरन करते है उनकी हाजिरी उसके दरबार में लग जाती है।
जो सोये रहते है उनकी गैर हाजिरी लग जाती है फिर बाद में कोई सुनवाई नही होती। बच्चे की क्लास की तरह रोज रोज उसके दरबार में भी गैर हाजिरी लगने से भव सागर को पास करना मुश्किल हो जाता है इसलिए हम सत्संगी जीवों भी चाहिए की सुबह उस मालिक की दरगाह में अपनी हाजिरी जरूर लगवाएं जी।।
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एक बीबी थी..जो महाराज जी की सेवादारनी थी..उसको महाराज जी से बड़ा प्रेम था..उन्होंने अपने हाथ से महाराज जी के लिये..एक चादर बनाई थी..बनाते-बनाते वो चादर थोड़ा गन्दी हो गयी..तो उसने सोचा..कि..इसको धुलवा दूँ..फ़िर महाराज जी की सेवा मे दूँगी..वो धोबन के पास गयी..और..उसको बोला..ये मेरे गुरु जी की सेवा के लिये हैं..इसको बाकी कपड़ो से अलग धोना.. वो धोबन कभी सत्संग नहीं आयी..लेकिन उसके मन मे भी प्रेम था..उसने वो चादर अलग धो दी..जब बीबी ने उसे पैसे दिये..तो उसने पैसे लेने से मना कर दिया..उस धोबन ने कहा कि :: नहीं बहन..!! ये गुरु सेवा की चादर हैं..इसका क्या पैसे लेने..लेकिन बीबी ने काफ़ी ज़ोर दिया..फ़िर भी उसने पैसे नहीं लिये..तब बीबी ने उसका प्रेम देखकर कहा कि :: जा मेरे सतगुरू जी तेरी संभाल करेंगे.. फिर कुच्छ महीने के बाद..उस धोबन के सपने मे बड़े महाराज जी आये..और..कहा कि :: तुम्हें इतने तारीख़ को ले जाएँगे..वो धोबन सुबह उठ कर..सबको बताने लगी..कि..सतगुरू जी ने मुझे सपने में दर्शन दिये..और..कहा कि :: उस तारीख़ को ले जायेंगे..सब कहने लगे..कि..ये बीबी तो पागल हो गयी..ये ना तो कभी सत्संग गयी हैं..और..ना ही इसने नाम लिया हैं..इसकी संभाल कैसे होगी.. धीरे-धीरे ये बात सभी को पता चल गयी..और..उस बीबी के पास भी पहुँच गयी..जिसने चादर धुलवाई थी..उसने बड़े महाराज जी के पास जाकर पूछा..इसका क्या राज हैं..कि..वो धोबन को आपने दर्शन दे कर..ले जाने के लिये कहा हैं..तो महाराज जी ने उस बीबी से कहा कि :: बीबी तुमने जब चादर धुलवाई थी..तो उससे क्या कहा था कि :: मेरा सतगुरू तेरी संभाल करेगा..तो तेरी ज़ुबान की कीमत तो रखनी ही पडे़गी ना.. वो मालिक का रूप होते हैं..और..बस जो उनके हुकुम में रहते हैं..उन्हें धुरधाम पहुँचा कर ही छोड़ते हैं.
जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव

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