Satsang ke phayde
सेवा का सौभाग्य
एक बार की
घटना है बाबा
जी कहीं पर कुछ काम
करवा रहे थे
संगत सेवा कर रही थी । डेरे
के कुछ बड़
बड़े जत्थेदार और
औहदेदार भी वहां
मौजूद थे सेवा समाप्त होने के
बाद सब सेवादार
वहां से चले
गए ।एक को
छोड़ कर बाबा
जी भी जब
वहां से चलने
लगे तो उन
प्रबंधकों से बोले
इस सेवादार को भी
गाड़ी में बिठा
लो। वहां पर
मौजूद लोग एक
दुसरे का मुंह देखने लगे।
आखिर बाबा जी
इस सेवादार को साथ
क्यों ले जा
रहे हैं…!!अब
गुरु का आदेश
था तो उस
सेवादार को साथ
ले लिया ।
लेकिन अब गाड़ी
में
बैठने की जगह
नहीं थी सेवादार
ने कहा कोई
बात नहीं दास आपके चरणों
में नीचे ही
बैठ जाएगा और
वो नीचे ही
बैठ गया और गाड़ी चल
पड़ी तभी किसी
ने उस से व्यंग्य से पूछा क्यों भाई साहब
आप केवल सेवा
ही करते हो
या कोई काम
धंधा भी है….!! यह सुन
कर वह सेवादार
मुस्कराया और उस
ने हाथ जोड़
कर बड़ी ही विनम्रता से कहा….!!
” दास तो सुप्रीम
कोर्ट का एक
छोटा सा जज
है । सेवा
का सौभाग्य तो
कभी कभी हजूर
सच्चे पातशाह की
कृपा से बड़ी मुश्किल से ही
मिलता है।” सभी
एक दम अपनी
सीटों से खड़े
हो गये और
उस सेवादार को
सीट देने लगे। बाबा जी
भी अपने शिष्यों
को क्या क्या और कैसे
कैसे सीख देते
हैं।
सत्संग के फ़ायदे
कीर्तन और सत्संग
मे जाने से
फ़ायदा ही फ़ायदा
होता है।कभी नुकसान
नही होता।एक अँधा
फूलों के बाग
में चला जाता
है, अगर वह
फूलों की खूबसूरती
को नही देख
सकता तो फूलों
की सुगंध तो
जरुर ले ही
जायगा। जैसे एक
पत्थर पानी में
डूबा दो चाहे
पिघलता नहीं पर
कम से कम
सूरज की तपिश
से तो बचा
रहता है।इसी प्रकार
अगर हम सत्संग
में जा कर
नाम की कमाई
करते हैं तो
सोने पे सुहागा
है नही भी
करते तो भी
कम से कम
बुरी संगत से
तो बचे रहते
हैं।सत्संग वह आईना
है।जहाँ पर सत्संगी
अपने अवगुणों को
देख कर सुधारने
की कोशिश करता
है।और उसकी कोशिश
ही उसे एक
दिन गुरमुख बना
देती है।हमारा खुद
का सुधरना भी
किसी सेवा से
कम नहीं है।ये
भी एक बन्दगी
है।
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