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pichhale janm ki seva ka phal


पिछले जन्म की सेवा का फल
        जब चौथे पातशाह श्री गुरु राम दास जी महाराज के समय अमृतसर श्री हरि मंदिर साहब जी की सेवा चल रही थी। उस वक्त बहुत संगत सेवा कर रही थी, उस सेवा में उसमें उस समय का राजा भी सेवा के लिए आता था। गुरु साहिबान उस राजा को देख कर मुस्कुराते थे। ऐसा तीन-चार दिन होता रहा। एक दिन राजा ने गुरु साहिबान से पूछा :
       हे सच्चे पातशाह ! आप हर रोज मुझे देख कर मुस्कुराते क्यों है........ ?
 तब गुरु साहिबान ने बङे प्यार से  राजा की तरफ देखा और उन्हें  एक छोटी सी साखी सुनाई।
   हे राजन ! बहुत समय पहले की बात है कि एक दिन संगत इसी तरह सेवा कर रही थी, पर उस सेवा में कुछ दिहाडीदार मजदूर भी थे, जो संगत , सेवा भावना से सेवा कर रही थी तो शाम को गुरु साहिबान, उन सारी संगत को दर्शन देते थे। एक दिन उस दिहाङीदार मजदूर ने सोचा कि क्यों ना मैं भी बिना दिहाड़ी के आज सेवा करूं। उसने यह बात अपने परिवार से की परिवार ने कहा कोई बात नहीं आप सेवा में जाओ, एक दिन हम दिहाड़ी नहीं लेंगे। भूखे रह लेंगे, लेकिन एक दिन हम सेवा को जरूर देंगे।
       यह साखी सुना कर गुरु साहिबान चुप कर गए, राजा शसोपंच में पड़ गया, और हाथ जोड़कर गुरु साहिबान से प्रार्थना की :
     हे सच्चे पातशाह ! लेकिन आप मुझे देख कर मुस्कुराते हैं, इसका क्या राज है.....?
गुरु साहिबान ने फिर मुस्कुराते हुए, उसको जवाब दिया :
       हे राजन ! पिछले जन्म में वो मजदूर तुम थे।    गुरु प्यारी साध संगत जी.....!
           सेवा का फल, एक ना एक दिन जरूर मिलता है। सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। चाहे ज्यादा की गई हो चाहे थोङी।
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एक राजमहल में कामवाली और उसका बेटा काम करते थे.एक दिन राजमहल में कामवाली के बेटे को हीरा मिलता है. वो माँ को बताता है.कामवाली होशियारी से वो हीरा बाहर फेककर कहती है ये कांच है हीरा नहीं.कामवाली घर जाते वक्त चुपके से वो हीरा उठाके ले जाती है.वह सुनार के पास जाती है...
सुनार समझ जाता है इसको कही मिला होगा,ये असली या नकली पता नही इसलिए पूछने आ गई.
सुनार भी होशियारी सें वो हीरा बाहर फेंक कर कहता है ये कांच है हीरा नहीं. कामवाली लौट जाती है.सुनार वो हीरा चुपके सेे उठाकर जौहरी के पास ले जाता है, जौहरी हीरा पहचान लेता है. अनमोल हीरा देखकर उसकी नियत बदल जाती है.
वो भी हीरा बाहर फेंक कर कहता है ये कांच है हीरा नहीं.जैसे ही जौहरी हीरा बाहर फेंकता है...उसके टुकडे टुकडे हो जाते है. यह सब एक राहगीर निहार रहा था...
वह हीरे के पास जाकर पूछता है...कामवाली और सुनार ने दो बार तुम्हे फेंका...
तब तो तूम नही टूटे... फिर अब कैसे टूटे?हीरा बोला....कामवाली और सुनार ने दो बार मुझे फेंका
क्योंकि...वो मेरी असलियत से अनजान थे.लेकिन....जौहरी तो मेरी असलियत जानता था...तब भी उसने मुझे बाहर फेंक दिया...यह दुःख मै सहन न कर सका...इसलिए मै टूट गया .....ऐसा ही...
हम मनुष्यों के साथ भी होता है !!!जो आपको जानते है, उसके बावजूद भी वे आपका दिल दुःखाते है तब यह बात आप सहन नही कर पाते....!इसलिए....कभी भी अपने अभिमान या स्वार्थ के लिए अपने करीबियों का दिल ना तोड़ें...!!!हमारे आसपास भी...बहुत लोग ...  हीरे जैसे होते है !
उनके दिल और भावनाओं को ..कभी भी मत दुखाएं...और ना ही...उनको कभी अपमानित करें और न ही कभी उनके अच्छे गुणों को नज़र अंदाज  करें..दोस्तों कभी किसी अपने को धोखा न दे, पैसे की लिए तो कतई न दे।
किसी कवि ने कहा है:-
हंसो तो मुस्कराती है जिन्दगी...,
रोने पे आंसू बहाती है जिन्दगी...,
प्यार दो तो संवर जाती है जिन्दगी...,
गले लगाओ तो पास आती है जिन्दगी...,
जिस नजर से देखो वैसी नजर आती है जिन्दगी...,
नजरिया बदलते ही बदल जाती है जिन्दगी...॥
राधा स्वामी जी..

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