man bahut chanchal hai
ये जितने भी हमारे
कर्म हैं अच्छे
या बुरे..
'नाम' की कमाई
द्वारा खत्म हो
जाते हैं और
आत्मा निर्मल हो
जाती है पवित्र
हो जाती है..!!
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यदि पतंग की
डोरी हमारे हाथ
में है तो
आकाश में उड़ती
हुई पतंग दूर
होते हुए भी
हमसे दूर नही
होती...!!
यदि रस्सी
हमारे हाथ में
है तो घड़ा
गहरे कुए में
होने पर भी
हमसे दूर नही
होता...!!
इसी तरह
कुलमालिक "परमात्मा" दूर होने
पर भी हमसे
दूर नही होता
, यदि "ध्यान" की डोरी
हमारे हाथ में
है...!!!!
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“लगाम”
मन बहुत चंचल
है...हर वक्त
कुछ न कुछ
करतब करता रहता
है...
और ये
मन ही हमारा
एकमात्र विरोधी है, जिसे
हमें वश में
करना है..!! यह काम
कुछ दिनों या
वर्षों का नहीं
है..!!
एक सूफी
संत के अनुसार:——
"प्रियतम की बाहों
में पहुंचने के
लायक बनने में
पूरा जीवन तक
लग जाता है..!!"
जरा विचार
करें, जब से
सृष्टि की रचना
हुई है, तब
से मन को
इंद्रियों का सुख
भोगते हुए कितना
समय बीत चुका
है.....!! और
यह हम सब
स्वयं समझ सकते
हैं, कि मन
की इस आदत
को बदलने के
लिए, कितना समय
लगेगा ??और कितनी
मेहनत की जरूरत
होगी????? निरन्तर
भजन सिमरन करते रहिए
सफलता जरूर मिलेगी।
राधा स्वामी
जी
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*इस काया के अन्दर
बेशुमार किमती चीजें हैं...!!
इस काया के अन्दर जहाँ काम, क्रोध, वगैरह हैं...
वहीं शील, क्षमा, विवेक, धीरज आदि वस्तुएँ भी है...!!
हर एक इनसान के अन्दर प्रेम का खजाना भरा पड़ा है,
मालिक की भक्ति के भण्डार भरे पडे हैं, समुद्र भरे पडे हैं...!!
कुल आलम ही इसके अन्दर मौजूद हैं...!!!!
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परमात्मा के पास बैठिये
इतने गहरे भाव से कि आँसू आ जाएँ, किसी प्रकार की कोई आकांक्षा या मांग न रखें,परमात्मा
का होना ही आशीर्वाद है मांगना नहीं पड़ता उनके पास होने से ही सब मिल जाता है।
जैसे फूल के पास जाओ
खुशबू अपने आप ही मिलने लगती है परमात्मा ने सारी व्यवस्था पहले ही की हुई है मांगने
की जरूरत ही नही है बस उनके पास जाना है, उनकी शरणागति स्वीकार कर लेना उनके बताये
मार्ग पर चलना हमारा कर्तव्य बस इतना ही है बाकी सब कुछ स्वयं ही हो जाता है।.....
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