mukti hetu sanvad va vibhinna pooja paath se laabh haani
ब्रह्माजी व उनके
मानस पुत्र लोमस
ऋषि में मुक्ति
हेतु संवाद व
विभिन्न पूजा
पाठ से लाभ
हानि
लोमस ऋषि के
बारे में कहा
जाता है कि
उनकी तपस्या से
प्रसन्न होकर शंकर
जी ने उनसे
वरदान माँगने को
कहा। लोमस ने
अजर-अमर होने
की इच्छा बताई
तो शंकर जी
ने कहा कि
यह असंभव है,
उम्र चाहे जितनी
माँग लो। लोमस
ने कहा कि
एक कल्प बीतने
पर उनके शरीर
का एक रोम
टूटे और जब
शरीर के सभी
रोम टूट जाएँ
तब मृत्यु हो।
शंकर जी ने
'एवमस्तु' कह दिया।
एक कल्प की
अवधि छोटी नहीं
होती।
सतयुग- 17लाख28हजार
वर्ष, त्रेता-
12लाख96हजार वर्ष, द्वापर- 8लाख64हजार वर्ष,
और कलियुग-
4लाख32हजार वर्ष।
चारों युगों को
मिला कर एक
चौकड़ी कहते हैं,
72 चौकड़ी को एक
मन्वन्तर और 14 मन्वन्तर को
मिला कर एक
कल्प होता है।
इस तरह 4 अरब
35 करोड़ 45 लाख 60 हजार वर्ष
की अवधि को
एक कल्प कहा
जाता है।इतनी लम्बी
उम्र का वरदान
पाकर भी उन्होंने
झोपड़ी इसलिए नहीं
बनाई कि जब
यहाँ से एक
दिन जाना ही
है तो झोपड़ी
किस लिए ? लोमस
ऋषि को ब्रह्मा
जी का पुत्र
कहा जाता है।
जब उन्हें आत्मबोध
हो गया, आन्तरिक
दिव्य चक्षु और
दिव्य कान खुल
गए यानी पूर्ण
ग्यान हो गया
और अपने पिछले
जन्म भी देखने
की शक्ति प्राप्त
हो गई कि
कब किस योनि
में जन्म लेकर
क्या क्या दु:ख भोगा
तो उन्होंने अन्य
जीवों के कल्याण
और चेताने के
लिए अपने पिता
ब्रह्मा जी से
प्रश्न किया कि
"मुक्ति" का मार्ग
कौन-सा है,
जिसका उल्लेख हाथरस
वाले "तुलसी साहिब"(संवत्
1820--1900 ) द्वारा रचित "घट रामायण"
में इस प्रकार
मिलता है----
लोमस ऋषी एक जो भइया।
भाखा उन सब
बिधि बिधि कहिया।।
पितु से
पूछी मुक्ति की बाता।
गंगा का फल कहौ विधाता।।
पिता--- गंगा
का फल भाखि
सुनाई।
गंगा आदि मुक्ति
की दाई।।
लोमस----सहस
इकादस गंगा
न्हाया।
जा से
जोनि मच्छ की
पाया।।
अनेक जीव
मारि मोहिं खाया।
ऐसे
बहुत बहुत दुख पाया।।
जे
जे तीरथ सबै नहाये।
जल जिव
जोनि माहिं भरमाये।।
पिता----लोमस ऋषि
यह सुनिये भाई।
सेवा ठाकुर कीजै जाई।।
लोमस---सहस बरस
ठाकुर की सेवा।
दूजा जाना और न भेवा।।
सेवा सिव
कीन्ही बिधि भाँता।
फूल पत्र जल
अच्छत साथा।।
येहि बिधि पूजा
करी बनाई।
अन्त जोनि पाहन की
पाई।।
पिता---- पूजौ तुलसी प्रीति
लगाई।
पीपर में
जल नाओ
जाई।।
ऐसी
भक्ति करै
मन लाई।
सहजै में
मुक्ती होइ
जाई।।
एक
दिया तुलसी पै
लावै।
तो सौ
कोटि जग्य फल
पावै।।
लोमस---- सहस तीन
तुलसी कौ पूजा।
बृच्छ जोनि पाई
येहि बूझा।।
पीपर पूजा बरस हजारा।
ता की
बिधि भाखौं निरबारा।।
कानखजूरा देंही पाई।
बार बार भौ में भरमाई।।
पिता----- एकादसी करौ तुम
जाई।
ता से
मुक्ति सहज में
पाई।।
लोमस------सहस बरस
एकादसि कीन्हा।
अन्त जनम
माखी कौ लीन्हा।।
ऐसे बर्त कीन्ह बहुतेरा।
ता
का सुनु बरतंत
निबेरा।।
पिरथम ऐतवार को कीन्हा।
ता से
जनम चील्ह कौ
लीन्हा।।
मंगल बहु बिधि
बरत रहाई।
ता से
जनम सूअर कौ
पाई।।
अरु पुनि
बरत तीज कौ
कीन्हा।
कूकुर जनम ताहि से
लीन्हा।।
अरु अनन्त चौदस
पुनि कीन्हा।
ता
से जनम ऊँट कौ
लीन्हा।।
और
चतुरथी बरत बखाना।
ता
से जनम भैंस कौ
जाना।।
पिता--------पुन्य गऊ
का सब से
भारी।
या
से मुक्ती होइ विचारी।।
लोमस-----गऊ
दान दीन्हा बहुतेरा।
जनम मिला
जो बकरी केरा।।
जो
तुम कही सभी
हम कीन्हा।
मुक्ति न पाई रह्यो अधीना।।
ऐसी कहाँ कहाँ की गाऊँ।
जेहि पूजौं तेहि
माहिं समाऊँ।।
पिता-------
तीरथ ब्रत सब झूठ पसारा।
नहिं होइहैं या से निरबारा।।
लोमस ऋषि मैं कहौं बिचारा।
संत सरनि से होइ उबारा।।
जयगुरुदेव..........
No comments: