Ek baar raaja bhoj ke darabaar mein
एक बार गुरु
महाराज ने कहानी
सुनाते हैं बताया
एक
बार राजा भोज
के दरबार में
एक सवाल उठा
कि
ऐसा कौन
सा कुआं है
जिसमें गिरने के बाद
आदमी बाहर नहीं
निकल पाता?
इस प्रश्न
का उत्तर कोई
नहीं दे पाया। आखिर
में राजा भोज
ने राज पंडित
से कहा कि इस
प्रश्न का उत्तर
सात दिनों के
अंदर लेकर आओ वरना
आपको अभी तक
जो इनाम धन
आदि दिया गया
है वापस ले लिए
जायेंगे तथा इस
नगरी को छोड़कर
दूसरी जगह जाना
होगा।
छः दिन
बीत चुके थे। राज
पंडित को जबाव
नहीं मिला था निराश
होकर वह जंगल
की तरफ गया।
वहां उसकी
भेंट एक गड़रिए
से हुई। गड़रिए
ने पूछा -" आप
तो राजपंडित हैं,
राजा के दुलारे
हो फिर चेहरे
पर इतनी उदासी
क्यों?* यह
गड़रिया मेरा क्या
मार्गदर्शन करेगा? सोचकर पंडित
ने कुछ नहीं
कहा। इसपर गडरिए ने पुनः
उदासी का कारण
पूछते हुए कहा
-" पंडित जी हम
भी सत्संगी हैं,
हो सकता है
आपके प्रश्न
का जवाब मेरे
पास हो, अतः
नि:संकोच कहिए।"
राज पंडित
ने प्रश्न बता
दिया और कहा
कि अगर कल
तक प्रश्न का
जवाब नहीं मिला
तो राजा नगर
से निकाल देगा।
गड़रिया बोला -" मेरे
पास पारस है
उससे खूब सोना
बनाओ। एक भोज
क्या लाखों भोज
तेरे पीछे घूमेंगे।
बस,पारस देने से
पहले मेरी एक
शर्त माननी होगी
कि तुझे मेरा
चेला बनना पड़ेगा।" राज
पंडित के अंदर
पहले तो अहंकार
जागा कि दो
कौड़ी के गड़रिए
का चेला बनूं?
लेकिन स्वार्थ पूर्ति
हेतु चेला बनने
के लिए तैयार
हो गया।
गड़रिया बोला -" *पहले भेड़
का दूध पीओ
फिर चेले बनो।
राजपंडित ने कहा
कि यदि ब्राह्मण
भेड़ का दूध
पीयेगा तो उसकी
बुद्धि मारी जायेगी।
मैं दूध नहीं
पीऊंगा। तो जाओ, मैं
पारस नहीं दूंगा
- गड़रिया बोला। राज पंडित बोला
-" ठीक है,दूध
पीने को तैयार
हूं,आगे क्या
करना है?" गड़रिया
बोला-" अब तो
पहले मैं दूध
को झूठा करूंगा
फिर तुम्हें पीना
पड़ेगा।"
राजपंडित ने कहा
-" तू तो हद
करता है! ब्राह्मण
को झूठा पिलायेगा?"
तो जाओ, गड़रिया
बोला। राज पंडित
बोला -" मैं तैयार
हूं झूठा दूध
पीने को ।"
*गड़रिया बोला-" वह बात
गयी।अब तो सामने
जो मरे हुए
इंसान की खोपड़ी
का कंकाल पड़ा
है, उसमें मैं
दूध दोहूंगा,उसको
झूठा करूंगा फिर
तुम्हें पिलाऊंगा। तब मिलेगा पारस। नहीं
तो अपना रास्ता
लीजिए।"*
राजपंडित ने खूब
विचार कर कहा-"
है तो बड़ा
कठिन लेकिन मैं
तैयार हूं। गड़रिया बोला-" मिल
गया जवाब यही तो
कुआं है लोभ का तृष्णा
का जिसमें आदमी
गिरता जाता है
और फिर कभी
नहीं निकलता। जैसे कि
तुम पारस को
पाने के लिए
इस लोभ रूपी
कुएं में गिरते
चले गए।
जयगुरुदेव शाकाहारी परिवर्तन
………………………………………………………………………………………………..
वे लोग जो
गुरु के प्रकट
रूप में मौजूद
होते हुए, उसकी
शरण में नहीं
जाते, और उससे
दूर दूर रहते
हैं..!! वे चाहे
और कुछ भी
यत्न कर लें,
उनका "हरि" के द्वार
से फटकारा जाना
निश्चित है...!!!!
………………………………………………………………………………………………..
असल में 'भजन-सुमिरन' शरीर को
छोड़ने की तैयारी
के अलावा और
कुछ नही है..!! यही
भजन का असली
मकसद है..!! मंच पर
नाटक खेलने से
पहले, आप पार्ट
को कई बार
दोहराते हैं, ताकि
आप अपना पार्ट
अदा करने में
पूरी तरह कुशल
हो जाएँ...!!! इसी तरह
'भजन-सुमिरन' मौत
की हर रोज़
तैयारी के समान
है, ताकि जब
भी और जिस
तरह से भी
हमारी मौत हो
हम उसके लिए
पूरी तरह तैयार
हों...!!!!
………………………………………………………………………………………………..
माया के विषैले
रसों का प्रभाव
दूर करने के
लिए 'शब्द' का
महारस चखना चाहिए..!
'नाम' रूपी अमृत
से 'चारों पदार्थ'
प्राप्त होते हैं.!!
………………………………………………………………………………………………..
हमारी वास्तविक लड़ाई मन
से है..! बांबी
को पीटने से
सांप नहीं मरता!
इसी प्रकार शरीर
को कष्ट देने
से मन वश
में नहीं नहीं
आ सकता..!!
………………………………………………………………………………………………..
कर्मों का जाल
तोड़ने के लिए
अज्ञानी जीव शुभ
कर्म करता है!
जबकि नेक से
नेक कर्म करने
का फल भोगने
के लिए फिर
संसार में आना
पड़ेगा..!
………………………………………………………………………………………………..
यह त्रिलोकी मृत्युलोक है,
जिस पर यमराज
का पहरा है!
निर्वाण पद चौथे
लोक में है,वहां पहुंचकर
सच्चे 'नाम' का
वास्तविक ज्ञान होता है!!
No comments: