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Kabir ji se kisi ne puchha


गुरु ग्रंथ साहब में अरदास में एक लाइन आती है कि हे ईश्वर मुझे सारे दिन उन्ही लोगो से मिलाना जिनके मिलने से तेरा नाम याद आवे ""सेई प्यारे मेल ,जिनां मिलियां तेरा नाम चित आवे ""*
अगर आपको दिन मे कोई* ऐसा इंसान मिल जाये जो आपको प्रभु की याद दिला दे  तो समझ लेना कि आज
आपका दिन श्रेष्ठ ही नहीं सर्वश्रेष्ठ है !!
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बाबा जी कहते है हमें जो यह जनम मालिक ने दिया है इसे व्यर्थ गवाये।
हमारा हर दिन नया जन्म है हमारी हर साँस उस मालिक की दी हुई है। हमें नहीं मालूम कब यह डोर टूट जायेगी।
हमें चहिये की हर समय मालिक को पाने के लिए भजन सिमरन करते रहे मालिक अपने तरफ कदम बढ़ाने वाले को आगे हो कर गले लगते है।जो मालिक का प्यारा बन जाता है उसे हमेशा के लिए अपने चरनो में जगह देते है।।
।।राधा स्वामीजी।।
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रूहानियतकाअर्थ
रूहानियत का अर्थ है मन का सकून।मन को सकून हौमै के कारण नहीं मिलता है  अब मन में विचार आता है कि अगर परमात्मा हर एक के अन्दर है तो हमें क्यों नजर नहीं आता?  हमारे अन्दर किस चीज़ की रूकावट है? वह रूकावट हमारे  अन्दर से किस प्रकार दूर हो सकती है? गुरु अर्जुन देव जी लिखते हैं
"एका संगति इकृत गृहि बसते मिलि बात करते भाई।
अंतरि अलख जाई लखिआ विचि पडदा हउमै पाई।
कि दोनों इकट्ठे रहते है और एक ही घर में दोनों का निवास है,लेकिन आपस में मिलाप नहीं है।आत्मा भी शरीर के अन्दर है, परमात्मा भी इस शरीर के अन्दर है,लेकिन कभी आत्मा ने परमात्मा को देखा, कभी आत्मा सुहागिन हुई।फिर खुद ही जवाब देते हैं कि परमात्मा जरूर हमारे शरीर के अन्दर है,लेकिन हमारे और मालिक के बीच हौंमैं या अहं की बड़ी जबरदस्त है। वह परमात्मा सच्चा है,उँचे से उँचा है सच्चखण्ड का रहने वाला है,लेकिन जब तक हौंमैं की रूकावट दूर नहीं करेंगे, उस परमात्मा से नहीं मिल सकते।
जय गुरुदेव प्रेमियो !!!
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एक बार संत कबीर जी से किसी ने पूछा, 'आप दिन भर कपड़ा बुनते रहते हैं तो भगवान का स्मरण कब करते हैं?'कबीर उस व्यक्ति को लेकर अपनी झोपड़ी से बाहर गए। बोले, 'यहां खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जवाब सीधे देकर, मैं उसे दिखा सकता हूं।' कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर लौट रही थी।उसके चेहरे पर प्रसन्नता और चाल में रफ्तार थी। उमंग से भरी हुई वह नाचती हुई-सी चली जा रही थी। गागर को उसने पकड़ नहीं रखा था, फिर भी वह पूरी तरह संभली हुई थी।कबीर ने कहा, 'उस औरत कोदेखो। वह जरूर कोई गीत गुनगुना रही है। शायद कोई प्रियजन घर आया होगा। वह प्यासा होगा, उसके लिए वह पानी लेकर जा रही है। मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि उसे गागर की याद होगी या नहीं।'कबीर की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया,'उसे गागर की याद नहीं होती तो अब तक तो गागर नीचे ही गिर चुकी होती।' कबीर बोले, 'यह साधारण सी औरत सिर पर गागर रखकर रास्ता पार करती है। मजे से गीत गाती है, फिर भी गागर का ख्याल उसके मन में बराबर बना हुआ है। और तुम मुझे इससे भी गया गुजरा समझते हो कि मैं कपड़ा बुनता हूं और परमात्मा का स्मरण करने के लिए मुझे अलग से वक्त कीजरूरत है। मेरी आत्मा हमेशा उसी में लगी रहती है। कपड़ा बुनने के काम में शरीर लगा रहता हैआत्मा प्रभु के चरणों में लीन रहती है। आत्मा हर समय प्रभु के चिंतन में डूबी रहती है। इसलिए ये हाथ भी आनंदमय होकर कपड़ा बुनते रहते हैं।....
जय गुरुदेव प्रेमियो !!!

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