Guru Nanak dev
गुरु नानक साहेब
ने एक दिन
अजब वेश बनाया,,काले वस्त्र,,हाथ
में चिमटा,,एक झोला,कुछ खूंखार
कुत्ते,,बिलकुल काल भैरव
से बन
कर करतारपुर नगर से
बाहर की तरफ
जाने लगे,,,उनके
अनुसरण करते
सारी संगत भी
साथ ही चल
पड़ी,,,,कुछ दूर
चल कर गुरु
नानक साहब
ने मुड़ कर
देखा तो अपने
झोले में हाथ
डाला और सोने
के सिक्के
निकाले और संगत
की तरफ उछाल
दिए,,,और आगे
बढ़ गए,,,,कुछ
लोग
वो सिक्के इक्कठे करने
लग गए और
वहीं रुक गए,,,,गुरु नानक
आगे चले
गए,,,,फिर कुछ
दूर जा कर
झोले से हीरे
निकाले और संगत
की तरफ
फेंके,,,,फिर कुछ
आगे जा कर
रत्न,,,फिर कुछ
आगे जा कर
पन्ने,,,हर
बार कुछ ना
कुछ लोग संगत
से कम होते
गए
जब कुछ लोग
ही गुरु साहब
के पीछे रह
गए तो महाराज
ने उन पर
खुंख़ार कुत्ते छोड़ दिए,,,अब सब
लोग भाग गए
बस दो सिख
रह गए
भाई लहणा और
बाबा बुढ़ा जी,,,अब गुरु
नानक साहेब ने
उनको
चिमटे से पीटना
शुरू कर दिया
पर वो मौन
रह कर मार
खाते रहे,,,,
गुरु नानक आगे
चल पड़े,,,, दोनों
फिर पीछे चल
पड़े,,,गुरु नानक
साहब
ने बाबा बुढ़ा
जी को रुकने
का इशारा किया
तो वो वही
हाथ
जोड़ कर रुक
गए,,, गुरु जी
ने कहा,,लहणे
देख सारे मुझे
छोड़ कर चले
गए,,मेरा सबसे
बड़ा सेवक बुढ़ा
भी रुक गया
तूँ क्यों नही
जाता
भाई लहणे ने
कहा :- सतगुरु,,,जिनको तुझसे
सन्तान के वर
की आस
थी वो मुरादे
पा कर मुड़
गए,,कोई सोने
को चाहने वाला
सोना ले
के,,हीरे की
चाह वाला हीरे
ले के,,,,कोई
तेरी रम्ज़ में
छुपे भले को
नही देख पाया
तो तेरे दिए
दुख से डर
के चला गया,,,किसी को
तूने
रुकने का इशारा
कर दिया तो
वो तेरे हुक्म
में रुक गया,,,लेकिन
दाता,,,मैं कहाँ
जाऊँ मेरा कुटम्ब
भी तूँ,,मेरी
ओट भी तूँ,,,मेरा
आसरा भी तूँ,,,मेरा बल
भी तूँ,,,मेरी
बुद्धि भी तूँ,
मेरा धन भी
तूँ,,,मैं
आप के बिना
अपने जीवन की
कलपना भी नही
कर सकता,,, गुरु
नानक साहब नें
जब ये सुना
तो कहा लहणे
जब तेरा सब
कुछ मैं हूँ
तो
ठीक है वहां
जो वो एक
मुर्दा शरीर पड़ा
है जा वो
मुर्दा खा कर
आ,,,,भाई लहणे
उठ कर उस
मुर्दे के निकट
गए और बैठ
गए,,,गुरु नानक
बोले लहणे बैठा
क्यों है मुर्दा
खा
भाई लहणे ने
हाथ जोड़ कर
कहा:-सतगुरु कहाँ
से खाना शुरू
करू पैर
की तरफ से
या सिर की
तरफ से,,,,हुक्म
हुआ सिर की
तरफ से
खा,,,,भाई लहणे
ने जब कफ़न
हटाया तो वहाँ
कोई मुर्दा था
ही
नही,,,,गुरु नानक
साहब दौड़ करआए
और भाई लहणे
को गले से
लगा
लिया और कहा
भाई लहणे,,,तूने
सतगुरु को अपना
सब कुछ माना
है,,,तेरी सेवा
धन्य है,,,आज
तू मेरे अंग
लगा है आज
से ये संसार
तुझे गुरु
अंगद देव के
नाम से जानेगा,,
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