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Dat kar man ka mukabala kare



"डट कर मन का मुकाबला करे और गुरू कृपा के पात्र बने"   {साखी}
---एक शख्स सुबह उठा साफ कपडे पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सत्संग का आंनद मान सके रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा कपड़े कीचड़ से सन गये वापस घर आया कपड़े बदलकर वापस सत्संग घर की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले फिर सत्संग घर की तरफ़ रवाना हो गया जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है कि एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे पीछे पीछे चलने को कह रहा है इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाजे तक ले  आया पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सत्संग सुन ले लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर में दाखिल नहीं हुआ दो तीन बार इनकार करने पर उसने पुछा आप अंदर क्यों नहीं रहे है...?
दुसरे शख्स ने जवाब दिया "इसलिए क्योंकि मैं काल हूँ ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना रहा काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा और दुबारा सत्संग घर की तरफ़ रवाना हुए तो सतगुरु जी ने आपके सारे गुनाह बख्श दिए जब मैैंने आपको दुसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो सतगुरु जी ने आपके पूरे परिवार के गुनाह बख्श दिए!मैं डर गया कि अगर अबकी बार मैंने आपरो गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर चले गए तो कहीं ऐसा हो वह आपके सारे गांव के लोगों के गुनाह बख्श दे इसलिए मैं यहा तक आपको खुद पहुचाने आया हूँ  अब हम देखें कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर पहुँच गया और एक हम जीव है यदि हमारे घर पर कोई मेहमान जाये या हमें कोई काम जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन सिमरन छोड़ देते है। क्यो???
क्योंकि हम जीव अपने सतगुरु जी से ज्यादा दुनियावी चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते है। उनसे ज्यादा मोह है। इसके विपरीत वह  शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर  सत्संग घर चला गया क्यों....???
वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगी का नियम टूटने नहीं देना चाहता था इसीलिए काल ने स्वयं  उस शख्स को मंजिल तक पहुँचया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रुकावट डाल रहा था,  बाधा !

इसी तरह हम जीव भी जब भजन सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बधित करे, हमे हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।
एक ना एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।
बस हमे भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी है। वह मालिक सतगुरु आप ही हमारे काम सिद्घ और सफल करेगा। इसलिए हमें  भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए जी।

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