Moh sakal vyaadhin ka moola
मोह सकल
व्याधिन का मूला
एक इंसान घने जंगल
में भटक गया
था। शाम हो
चुकी थी इसलिए
अंधेरे में उसे
मार्ग दिखाई
नहीं पड़ रहा
था तथा जंगली
जानवरों का डर
भी था अतः
वह एक पेड़
पर चढ़ गया
,सोचा सुबह होते
होते हुए वह
पुनः अपनी यात्रा
प्रारंभ कर देगा..
अगली सुबह एक
हाथियों का झुंड
उसी जंगल से
होते हुए गुजरा
उस झुंड के
एक हाथी ने
उस पेड़ को, जिस
पर व्यक्ति बैठा
हुआ था ,जोर
जोर से हिलाने
लगा .
वह व्यक्ति एकदम उठा
और पेड़ की
एक शाखा
पर दुबक कर
बैठ गया . पुनः
हाथी अपनी पूरी
ताकत के साथ
अपनी सूंड से
उस पेड़ को
हिलाए जा रहा
था
वह व्यक्ति बहुत घबरा
गया और गिरते-गिरते तालाब💬 पर झुके ,पेड़ की
एक डाल उसके
हाथ में आ
गई। डूबते हुए
को तिनके का
भी सहारा होता
है.. अतः उसने कुछ
राहत की सांस
ली ..लेकिन जब
उसने नीचे झांका
तो उसकी आँखें
फटी की फटी
रह गयी क्यूंकि
तालाब में चार
अजगर मुंह खोले
उसे देख रहे
हैं; और जिस
डाल को वह
पकड़े हुए था,
उसे दो चूहे
कुतर रहे थे..
बड़ी अजीब स्थित
हो गई थी..
आदमी घबरा गया
और सोचने लगा
कि हे ।भगवान
अब क्या होगा!
अब मुझे कौन
बचाएगा.. मुझे बचा
लो भगवान
उसी पेड़ पर
ठीक उस व्यक्ति
के ऊपर ,मधुमक्खियों
का एक छत्ता
लगा था। हाथी
के पेड़ को
हिलाने से मधुमक्खियां
उडऩे लगीं और
शहद की बूंदें
टपकने लगीं। और
शहद की एक
बूंद उसके होठों
पर आ गिरी।
उसने प्यास से सूख
रही जीभ को
होठों पर फेरा,
तो शहद की
उस बूंद में
गजब की मिठास
थी।
अब वह इतना
मगन हो गया
कि अपनी मुश्किलों
को भूल गया।..
तभी उस जंगल
से एक माने हुए
संत गुजरे।
उन महापुरुष ने
उसकी दयनीय स्थिति
को देखकर उसे
बचाने का प्रयास
किया।
महात्मा जी उसके
पास जाकर बोले-"मैं तुम्हें
बचाऊंगा, बच्चा मेरा हाथ
पकड़ लो"।
और बाहर आ
जाओ ..
उस इंसान ने जैसे
ही महात्मा जी
का हाथ पकड़ने
की कोशिश की,
कि एक बूंद
मधु मुंह में
फिर गिर गई
और व्यक्ति रुक
गया ...
महात्मा जी ने
अपनी बात दोहराते
हुए कहा कि
बच्चा ,चूहे
डाल को काट
देंगे तु
गिर जाएगा सांप
तुझे काट लेंगे
तू मर जाएगा.
इसलिए मेरा हाथ
पकड़ ले और
बाहर निकल आ..
व्यक्ति पुनः
अपनी स्थिति को देखते
हुए म हात्मा
जी का
हाथ पकड़ने की
कोशिश की ,कि
फिर वही एक
बूंद मधु मुंह
में फिर गिर
गई वह व्यक्ति
फिर रुक गया
और मग्न होकर
सोचने लगा कि
बाहर ऐसा आनंद
कहां..
एक बूंद, फिर एक
बूंद और हर
एक बूंद के
बाद अगली बूंद
का इंतजार।...
आखिर उस व्यक्ति
ने कहा हे
महात्मन !आप जाओ
मुझे यही सुख...है.. बाहर
ऐसी मिठास और
ऐसा आनंद
कहां ..
आखिर थक-हारकर
महात्मा जी चले
गए..
अब आप अंदाजा
लगा सकते हैं
की उस इंसान
का क्या हाल
हुआ होगा। ...
ठीक ऐसा ही
हाल हमारा भी
है, आईये इस
कहानी को अब
अपने सन्दर्भ में
देखें। ...
वह आदमी जिस
जंगल में जा
रहा था, वह
जंगल है-
दुनिया ..और अंधेरा
है ...अज्ञान. पेड़ की
डाली है
- आयु, जिसे दिन-रात रूपी
चूहे कुतर रहे
हैं। घमंड का
मदमस्त हाथी पेड़
को उखाडऩे में
लगा है। शहद
की बूंदें क्षणिक
सांसारिक सुख , भोग
हैं, जिनके कारण
मनुष्य खतरे को
भी अनदेखा कर
देता है, और
उन खतरों से
निकलने वाले रास्तों
की ओर से भी
मुंह फेर लेता
है। और
अंततः अपना पतन
कर बैठता है
महात्मा हमसे बार-बार कहते
हैं कि
इस संसार में
रहते हुए ध्यान-भजन ,सुमिरन
करके जीते जी
उस मालिक को
प्राप्त कर लो
और आवागमन से
छूट जाओ।।
लेकिन हम क्षणिक
संसारिक सुख भोग
के चक्कर में
उनकी बातों पर
ध्यान नहीं देते
और अमूल्य
मानव जीवन यूही बेकार
चला जाता है
और हम अंततः
काल के ग्रास
बन जाते हैं...
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